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________________ भारत का भविष्य एक झूठ के विरोध में दूसरा झूठ खड़ा कर लिया। पश्चिम एक झूठ बोलता रहा है कि आदमी सिर्फ शरीर है और भारत एक झूठ बोल रहा है कि आदमी सिर्फ आत्मा है । ये दोनों सरासर झूठ हैं। पश्चिम अपने झूठ के कारण अधार्मिक हो गया, क्योंकि सिर्फ शरीर को मानने वाले लोग, उनके लिए धर्म का कोई सवाल न रहा। भारत अपने झूठ के कारण अधार्मिक हो गया है। क्योंकि सिर्फ आत्मा को मानने वाले लोग। शरीर का जो जीवन है उसकी तरफ आंख बंद कर लिए हैं। जो माया है उसका विचार भी क्या करना । जो है ही नहीं उसके संबंध में सोचना भी क्या । जब कि आदमी की जिंदगी शरीर और आत्मा का जोड़ है। वह शरीर और आत्मा क एक सम्मिलित संगीत है। अगर हम आदमी को धार्मिक बनाना चाहते हैं तो उसके शरीर को भी स्वीकार करना होगा, उसकी आत्मा को भी। निश्चित ही उसके शरीर को बिना स्वीकार किए हम उसकी आत्मा की खोज में भी एक इंच आगे नहीं बढ़ सकते हैं। शरीर तो मिल ही जाए बिना आत्मा का कहीं लेकिन आत्मा बिना शरीर के नहीं मिलती। शरीर आधार है, उस आधार पर ही आत्मा अभिव्यक्त होती है। वह मीडियम है, वह माध्यम है। इस माध्यमको इनकार जिन लोगों ने कर दिया, उन लोगों ने इस माध्यम को बदलने का, इस माध्यम को सुंदर बनाने का, इस माध्यम को ज्यादा सत्य के निकट ले जाने का सारा उपाय छोड़ दिए हैं। शरीर का एक विरोध पैदा हुआ, एक दुश्मनी पैदा हुई, हम शरीर के शत्रु हो गए। और शरीर को जितना सताने में हम सफल सके हम समझने लगे कि उतने हम धार्मिक हैं। हमारी सारी तपश्चर्या शरीर को सताने की अनेक-अनेक योजनाओं के अतिरिक्त और क्या है ! जिसे हम तप कहते हैं, जिसे हम त्याग कहते हैं, वह शरीर की शत्रुता के अतिरिक्त और क्या है ! धीरे-धीरे यह खयाल पैदा हो गया कि जो आदमी शरीर को जितना तोड़ता है, जितना नष्ट करता है, जितना दमन करता है, उतना ही आध्यात्मिक है। शरीर को तोड़ने और नष्ट करने वाला आदमी विक्षिप्त तो हो सकता है आध्यात्मिक नहीं। क्योंकि आत्मा का भी 'अनुभव है उसके लिए एक स्वस्थ, शांत, और सुखी शरीर की आवश्यकता है। जो उस आत्मा के अनुभव के लिए भी एक ऐसे शरीर की आवश्यकता है जिसे भूला जा सके। क्या आपको पता है, दुखी शरीर को कभी भी नहीं भूला जा सकता। पैर में दर्द होता है तो पैर का पता चलता है, दर्द नहीं होता तो पैर का कोई पता नहीं चलता । सिर में दर्द होता है तो सिर का पता चलता है, दर्द नहीं होता तो सिर का कोई पता नहीं चलता। स्वास्थ्य की परिभाषा ही यही है कि जिस आदमी को अपने पूरे शरीर का कोई पता नहीं चलता वह आदमी स्वस्थ है, वह आदमी हेल्दी है। जिस आदमी को शरीर के किसी भी अंग का बोध होता है, पता चलता है, वह आदमी उस अंग में बीमार है। शरीर स्वस्थ हो तो शरीर को भूला जा सकता है और शरीर भूला जा सके तो आत्मा की खोज की जा सकती है। लेकिन हमने जो व्यवस्था ईजाद की उसमें शरीर को कष्ट देने को हमने अध्यात्म का मार्ग समझा । शरीर को कष्ट देने वाले लोग शरीर को कभी भी नहीं भूल पाते । कष्ट देकर शरीर को भूला नहीं जा सकता, कष्ट देने से शरीर और याद आता है । आपने ठीक से खाना खा लिया है तो पेट की आपको कोई याद न आएगी और आप उपवासे रह गए हैं तो पेट की चौबीस घंटे याद आती रहेगी। पेट पीड़ा में है, पीड़ा खबर दे रही है। Page 152 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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