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भारत का भविष्य
जीवंत नहीं हो सकता है। मैंने ये थोड़ी सी बातें कहीं, मेरी बातों को मान लेना जरूरी नहीं हैं। क्योंकि केवल वे ही लोग अपनी बातों को मानने पर जोर देते हैं जिनकी बातें कमजोर होती हैं। मैं आपको सिर्फ इतना ही कहंगा कि मेरी बातों को सोचना, अगर उनमें कोई सच्चाई होगी तो वह सच्चाई आपको मनवा लेगी और अगर वे असत्य होंगी तो अपने आप गिर जाएंगी। मेरी बातों को मानने की कोई भी जरूरत नहीं हैं। मेरी बातों को सोच लेना काफी है। अगर आप सोचेंगे, विचारेंगे तो जो सत्य होगा वह आपको दिखाई पड़ सकता है और सत्य दिखाई पड़े तो जीवन में क्रांति शुरू हो जाती है और युवा चित्त का जन्म प्रारंभ हो जाता है।
मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं।
और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें। दूसरा प्रवचन भारत का भविष्य नये के लिए पुराने को गिराना आवश्यक मेरे प्रिय आत्मन्! सुना है मैंने, एक गांव में बहुत पुराना चर्च था। वह चर्च इतना पुराना था कि आज गिरेगा या कल कहना मुश्किल था। हवाएं जोर से चलती थीं तो गांव के लोग डरते थे कि चर्च गिर जाएगा। आकाश में बादल आते थे तो गांव के लोग डरते थे कि चर्च गिर जाएगा। उस चर्च में प्रार्थना करने वाले लोगों ने प्रार्थना करनी बंद कर दी थी। चर्च के संरक्षक, चर्च के ट्रस्टियों ने एक बैठक बुलाई, क्योंकि चर्च में लोगों ने आना बंद कर दिया था। और तब विचार करना जरूरी हो गया था कि चर्च नया बनाया जाए। वे ट्रस्टी भी चर्च के बाहर ही मिले। उन्होंने अपनी बैठक में चार प्रस्ताव पास किए थे। वे मैं आपसे कहना चाहता हूं। उन्होंने पहला प्रस्ताव किया कि बहुत दुख की बात है कि पुराना चर्च हमें बदलना पड़ेगा। उन्होंने पहला प्रस्ताव पास किया बहुत दुख के साथ कि पुराना चर्च हमें गिराना पड़ेगा। पुराने को गिराते समय मन को सदा ही दुख होता है। क्योंकि मन पुराना ही है। और पुराने के साथ पुराने मन को भी मरना पड़ता है। उन्होंने दूसरा प्रस्ताव पास किया कि पुराने चर्च की जगह हम एक नया चर्च बनाने का निर्णय करते हैं। जैसा पुराने को गिराने का दुख से निर्णय किया, वैसे ही नये को बनाने का भी दुख से निर्णय किया। क्योंकि नया बनाने के लिए पहले आदमी को स्वयं भी नया होना पड़ता है। पुराने में जीना सुविधापूर्ण है, कन्वीनियंस है। नये में जीना खतरे से खाली नहीं।
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