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________________ भारत का भविष्य हमने धर्म के प्रति जो धारणा बनाई है उसमें बुनियादी भूल है। और इसलिए हम बिना धार्मिक हुए धार्मिक होने के खयाल से भर गए हैं। उन भूलों के कुछ सूत्रों पर मैं आपसे बात करना चाहता हूं। ताकि यह दिखाई पड़ सके कि हम धार्मिक क्यों नहीं हैं। और यह भी दिखाई पड़ सके कि हम धार्मिक कैसे हो सकते हैं। इसके पहले की वे चार सूत्र में आपसे कहूं, यह भी आपसे कह देना चाहता हूं कि जब तक कोई जाति, कोई समाज, कोई देश, कोई मनुष्य धार्मिक नहीं हो जाता तब तक उसे जीवन के पूरे आनंद का, पूरी शांति का, पूरी कृतार्थता का कोई भी अनुभव नहीं होता है। जैसे विज्ञान है बाहर के जगत के विकास के लिए, और बिना विज्ञान के जैसे दीन-हीन हो जाता है समाज, दरिद्र हो जाता है, दुखित और पीड़ित और बीमार हो जाता है। विज्ञान न हो आज तो बाहर के जगत में हम दीन-हीन पशुओं की भांति हो जाएंगे। वैसे ही भीतर के जगत का विज्ञान धर्म है और जब भीतर का धर्म खो जाता है तो भीतर एक दीनता आ जाती है, हीनता आ जाती है, भीतर एक अंधेरा छा जाता है । और भीतर का अंधेरा बाहर के अंधेरे से ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि बाहर का अंधेरा दो पैसे के दीये को खरीद कर मिटाया जा सकता है। लेकिन भीतर का अंधेरा तो तभी मिटता है जब आत्मा का दीया जल जाए और वह दीया कहीं बाजार में खरीदने से नहीं मिलता। उस दीये को जलाने के लिए तो श्रम करना पड़ता है, संकल्प करना पड़ता है, साधना करनी पड़ती है। उस दीये को जलाने के लिए तो जीवन को एक नई दिशा में गतिमान करना पड़ता है। लेकिन इतना निश्चित है कि आज तक पृथ्वी पर सबसे ज्यादा प्रसन्न और आनंदित लोग वे थे जो धार्मिक थे। उन लोगों ने ही इस पृथ्वी पर स्वर्ग को अनुभव किया। उन लोगों ने ही इस जीवन के पूरे आनंद को, कृतार्थता को अनुभव किया। उनके जीवन में ही अमृत की वर्षा हुई है जो धार्मिक थे। जो अधार्मिक हैं वे दुख में, पीड़ा में और नर्क में जीते हैं। धार्मिक हुए बिना कोई मार्ग नहीं है। लेकिन धार्मिक होने के लिए सबसे बड़ी बाधा इस बात से पड़ गई है कि हम इस बात को मान कर बैठ गए हैं कि हम धार्मिक हैं। फिर अब और कुछ करने की कोई जरूरत नहीं रह गई । एक भिखारी मान लेता है कि मैं सम्राट हूं। फिर बात खत्म हो गई। फिर अब उसे सम्राट होने के लिए कोई प्रयत्न करने का कोई सवाल न रहा । सस्ती तरकीब निकाली उसने, सम्राट हो गया कल्पना करके । असली में सम्राट होने के लिए श्रम करना पड़ता, यात्रा करनी पड़ती, संघर्ष करना पड़ता। उसने सपना देख लिया सम्राट होने का। लेकिन उस भिखारी को हम पागल कहेंगे। क्योंकि पागल का यही लक्षण है कि वह जो नहीं है वह अपने को मान लेता है। मैंने सुना है एक पागलखाने को नेहरू निरीक्षण करने गए थे। उस पागलखाने में उन्होंने जाकर पूछा कि कभी कोई यहां ठीक होता है, स्वस्थ होता है, रोग से मुक्त होता है। तो पागलखाने के अधिकारियों ने कहा कि निश्चित ही अक्सर लोग ठीक होकर चले जाते हैं। अभी एक आदमी ठीक हुआ है और हम उसे तीन दिन पहले छोड़ने को थे लेकिन हमने रोक रखा कि आप के हाथ से ही उसे मुक्ति दिलाएंगे। उस पागल को लाया गया जो ठीक हो गया था। उसे नेहरू से मिलाया गया। नेहरू ने उसकी शुभकामनाएं की कि तुम स्वस्थ हो गए, बहुत अच्छा। चलते-चलते उस आदमी ने पूछा कि लेकिन मैं आपका नाम नहीं पूछ पाया कि आप कौन हैं ? नेहरू ने कहा, मेरा नाम जवाहरलाल नेहरू है। वह आदमी हंसने लगा उसने कहा, आप घबड़ाइए मत, कुछ दिन आप भी इस जेल में रह जाएंगे तो ठीक हो जाएंगे। पहले मुझे भी यही खयाल था Page 147 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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