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________________ भारत का भविष्य तो यह पहला सूत्र ध्यान में रखने के लिए है और वह यह है कि स्त्री को हम उसकी भिन्नता में विकसित होने दें, पुरुष के समान बनाने की चेष्टा न करें। अन्यथा एक भूल पीछे हुई थी कि वह गुलाम थी और अब दूसरी भूल होगी कि वह केवल पुरुष की झूठी छाया, एक मिथ्या पुरुष बन कर रह जाएगी। अब तक ऐसा ही हुआ कि जब भी नारी पुरुष जैसी होती है, हम प्रशंसा करते हैं। रानी झांसी की प्रशंसा करते हैं, जोनापार्क की प्रशंसा करते हैं। कहते हैं : खूब लड़ी मर्दानी। लेकिन मर्दाना होना, पुरुष जैसा होना नारी के लिए सम्मान योग्य नहीं है। उसका अपना निजी व्यक्तित्व है और वह विकसित हो—प्रेम का, संगीत का, घर का, परिवार का, परिवार के केंद्र का; वह जो आंतरिक जीवन है मनुष्य के हृदय का। उसे वह पूरा तभी सकेगी जब वह ठीक अर्थों में नारी ही हो, पुरुष जैसी न हो। तो भारत की आने वाली संस्कृति में नारी को अपनी भिन्नता को परिपूर्ण रूप से विकसित करना है। ताकि वह ठीक-ठीक नारी का अनुदान, संस्कृति, और नये देश के निर्माण में दे सके। स्वभावतः इसके ही साथ दूसरी बात ध्यान में रखनी जरूरी है कि इसकी शिक्षा पुरुष जैसी न हो, न उसे व्यवसाय पुरुष जैसे दिए जाएं। मैं इसके अत्यंत विरोध में हूं। न तो पुरुषों जैसे व्यवसाय की नारी को जरूरत है, न वैसी शिक्षा की। क्योंकि वैसी शिक्षा, वैसी प्रतिस्पर्धा, वैसा प्रशिक्षण उसे एक झूठा व्यक्तित्व ही दे सकता है; उसकी आत्मा का सम्यक और ठीक विकास नहीं। और जिसका अपना ही व्यक्तित्व ठीक से विकसित न हुआ हो, वह देश के, समाज के व्यक्तित्व को परिपूरक नहीं बन सकती। तीसरी बात ध्यान में रखनी जैसी है और वह यह कि नारी अगर ठीक से विकसित हो तो वह पुरुष से ज्यादा बलवान है। क्योंकि बच्चों का सारा निर्माण उसके हाथ में है, परिवार का प्राण वह है। जीवन के जो भी महत्वपूर्ण अंग है उस पर उसकी छाया और उसका प्रभाव है। सभी पुरुष उसकी छाया में बड़े होते और उसके प्रेम में जीते हैं। उसकी सहानुभूति में, उसकी करुणा में, उसकी ममता में जीते हैं। अगर यह ममता, यह प्रेम और यह करुणा ठीक-ठीक विवेकयुक्त हों तो देश के निर्माण में क्रांतिकारी परिणाम लाए जा सकते हैं। देश के निर्माण का अंतिम अर्थ व्यक्तियों का ही निर्माण होता है। और व्यक्तियों के निर्माण का केंद्रीय तत्व मां है, पत्नी है, बहन है। वह जो नारी घेरे हुए पुरुष को चारों और से—अगर उसकी ममता और उसका प्रेम सृजनात्मक हो और पुरुषों को चुनौती देता हो और विकास के लिए आमंत्रण देता हो और उन दूर देश के सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरणा देता हो, तो ही एक नया समाज, एक नया देश और एक नये भारत का जन्म हो सकता है। लेकिन यदि नारी अतीत के ढंग की रही कि पुरुष की दासी, अगर अतीत का बहुत बोझ रहा तो यह नहीं हो सकेगा। और यदि नारी पश्चिम के ढंग की रही कि पुरुष के समकक्ष और समान खड़े होने की चेष्टा में रत, तो भी यह विकास नहीं हो सकेगा। नारी को अगर भारत के निर्माण में अपना ठीक स्थान ग्रहण करना है तो दो बातों से बचना है। एक तरफ कुआं है, एक तरफ खाई है। एक उसका अतीत है और एक उसके सामने खड़ा हुआ पश्चिम है। अगर अतीत के बोझ से नारी बचे और पश्चिम के प्रभाव से, तो ही भारत के सम्यक निर्माण में उसका महत्वपूर्ण योगदान उपलब्ध हो सकता है। बहुत कुछ उसके हाथ में है—बहुत क्षमता, बहुत शक्ति। लेकिन सारी शक्ति और क्षमता का जब Page 127 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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