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________________ अध्याय २० : धार्मिक परिचय धार्मिक परिचय विलायतमें रहते हुए कोई एक साल हुआ होगा, इस बीच दो थियोसॉफिस्ट मित्रोंसे मुलाकात हुई। दोनों सगे भाई थे और अविवाहित थे। उन्होंने मुझसे गीताकी बात निकाली। उन दिनों ये एड्विन एनाल्डकृत गीताके अंग्रेजी अनुवादको पढ़ रहे थे, पर मुझे उन्होंने अपने साथ संस्कृतमें गीता पड़ने के लिए कहा। मैं लज्जित हुआ; क्योंकि मैंने तो गीता न संस्कृतमें न प्राकृतमें ही पढ़ी थी। यह बात झेंपते हुए मुझे उनसे कहनी पड़ी। पर साथ ही यह भी कहा कि 'मैं आपके साथ पढ़ने के लिए तैयार हूं। यों तो मेरा संस्कृत ज्ञान नहीं के बराबर है, फिर भी मैं इतना समझ सकूँगा कि अनुवाद कहीं गड़बड़ होगा तो वह बता सकू।' इस तरह इन भाइयोंके साथ मेरा गीता-वाचन प्रारंभ हुआ। दूसरे अध्यायके अंतिम श्लोकोंमें, ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते । संगात्संजायते कामः कामाक्रोधोभिजायते ॥ क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः । स्मृतिभ्रंशात् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति ॥ इन श्लोकोंका मेरे दिलपर गहरा असर हुना। बस, कानोंमें उनकी ध्वनि दिनरात गूजा करती। तब मुझे प्रतीत हुआ कि भगवद्गीता तो अमूल्य ग्रंथ है। यह धारणा दिन-दिन अधिक दृढ़ होती गई--और, अब तो तत्वज्ञानके लिए मैं उसे सर्वोत्तम ग्रंथ मानता हूं। निराशाके समयमें इस ग्रंथने मेरी अमूल्य सहायता की है। यों इसके लगभग तमाम अंग्रेजी अनुवाद मैं पढ़ गया हूं। परंतु एडविन 'विषयका चितन करनेसे, पहले तो उसके साथ संग पैदा होता है और संगसे कामकी उत्पत्ति होती है। कामनाके पीछे-पीछे क्रोध आता है। फिर क्रोधसे संमोह, संमोहसे स्मृतिभ्रम, और स्मृतिभ्रमसे बुद्धिका नाश होता है और अंतमें पुरुष खुद ही नष्ट हो जाता है।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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