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________________ आत्म-कथा : भाग १ सुंदर ! ' वह तो हवाकी तरह उड़ती चली जाती और मैं यह सोचता कि कब घर पहुंचेंगे। फिर भी यह कहनेकी हिम्मत न पड़ती कि चलो वापस लौट चलें। इतनेमें ही हम एक पहाड़ीकी चोटीपर आ खड़े हुए। अब उतरें कैसे ? मगर ऊंची एडीके बूट होते हुए भी यह २०-२५ वर्षकी रमणी बिजलीकी तरह नीचे उतर गई और मैं शर्मिन्दा होकर यह सोच ही रहा हूं कि कैने उतरें। वह नीचे उतरकर कहकहा लगाती है और मुझे हिम्मत दिलाती है । कहती है--' ऊपर आकर हाथ पकड़कर नीचे खींच ले चलू ? ' मैं अपनेको ऐसा वोदा कैसे साबित करता ? अंतको सम्हल-सम्हलकर पैर रखता और कहीं-कहीं बैठता हुआ नीचे उतरा । इधर वह मजाकमें 'शा . . .बाश' कहकर मुझ शरमाये हुएको और भी शर्मिन्दा करने लगी। मैं मानता हूं कि इस तरह मजाकमें शर्मिन्दा करनेका उसे हक था । परंतु हर जगह में इस तरह कैसे बच सकता था ? ईश्वरको मंजूर था कि असत्यका जहर मेरे अंदरसे निकल जाय । वेटनरकी तरह ब्रायटन भी समुद्रतटपर हवाखोरीका मुकाम है। वहां मैं एक बार गया। जिस होटलमें ठहरा था, वहां एक मामूली दरजेकी अच्छी हैसियतवाली विधवा बुढ़िया घूमने आई थी। यह मेरे पहले सालकी बात है--- वेटनरके पहलेकी घटना है । यहां भोज्य पदार्थोके नाम फ्रेंच भाषामें लिखे हुए थे। मैं उन्हें नहीं समझ पाया बुढ़िया और में एक ही मेजपर बैठे हुए थे। बुढ़ियाने देखा कि मैं अजनबी हूं और कुछ दुविधामें हूं। उसने बात छेड़ी, तुम अजनबी मालूम होते हो ? किस फिक्रमें पड़े हो? तुमने खानेके लिए अबतक कुछ नहीं मंगाया ? मैं खानेके पदार्थोकी नामावली पढ़ रहा था और परोसनेवालोंसे पूछनेका विचार ही कर रहा था। मैंने इस भली देवीको धन्यवाद दिया और कहा- “ये नाम मेरी समझमें नहीं आते। मैं अन्नाहारी हूं और मैं जानना चाहता हूं कि इनमें कौन-सी चीजें मेरे कामकी हैं ?" यह देवी बोली--" तो लो, मैं तुम्हारी मदद करती हूं और तुम्हें बताये देती हूं कि इनमेंसे कौन-कौन सी चीजें ले सकते हो ।' मैंने उसकी सहायता सधन्यवाद स्वीकार की। यहांसे जो परिचय उसके साथ हुआ, सो मेरे बिलायन छोड़ने के बाद भी बरसों कायम रहा। उसने
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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