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________________ अध्याय ४० : मिल गया ४९३ लोगोंको, जो इस संबंध में कुछ बातें कह सकते, मैं पूछता; लेकिन कातनेका इजारा तो स्त्रियोंका ही था । अतः कातनेवाली स्त्री तो कहीं किसी स्त्रीको ही मिल सकती थी । सन् १९१७की भड़ौंचकी शिक्षा परिषद् में गुजराती भाई मुझे घसीट ले गये । वहां महासाहसी विधवा बहन गंगाबाई हाथ लगीं। वह बहुत पढ़ीलिखी नहीं थी; लेकिन उनमें साहस और समझ शिक्षित बहनोंमें साधारणतः जितनी होती है, उससे अधिक थी । उन्होंने अपने जीवनमेंसे छुआछूतकी जड़ खोद डाली थी और वह निडर होकर अंत्यजोंसे मिलती तथा उनकी सेवा करती थीं । उनके पास रुपया-पैसा था; लेकिन उनकी अपनी आवश्यकता बहुत थोड़ी थी । उनका शरीर सुगठित था और चाहे जहां अकेले जाने में वह तनिक भी संकोच नहीं करती थीं। वह तो घोड़ेकी सवारी के लिए भी तैयार रहतीं । इस बहन से मैंने गोधराकी परिषद् में विशेष परिचय बढ़ाया। मैंने अपनी व्यथा उन्हें कह सुनाई और जिस तरह दमयंती नलकी तलाश में घूम रही थी उसी तरह चरखेकी खोज में घूमने की बात स्वीकार करके उन्होंने मेरा बोझ हलका कर दिया । ४० मिल गया गुजरात में खूब घूम चुकनेके बाद गायकवाड़ी राज्य के बीजापुर गांव में गंगाबहनको चरखा मिला। वहां बहुत से कुटुंबोंके पास चरखा था, जिसे उन्होंने टांडपर चढ़ाकर रख छोड़ा था; लेकिन अगर कोई उनका कता सूत ले ले और उन्हें पूनियां बराबर दी जायं तो वे कातनेके लिए तैयार थे । गंगाबहनने मुझे खबर दी और मेरे हर्षका पार न रहा। पूनी पहुंचाने का काम कठिन जान पड़ा । स्वर्गीय भाई उमर सुबानी से बातचीत करनेपर उन्होंने अपनी मिलसे पूनियां पहुंचानेकी जिम्मेदारी अपने सिर ली । मैंने ये गंगाबहनके पास भेजीं। इसपर तो सूत इतनी तेजी से तैयार होने लगा कि मैं थक गया । भाई उमर सुबानीकी उदारता विशाल होते हुए भी आखिर उसकी
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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