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________________ अध्याय ३६ : खादीका जन्म ४६१ दसरा कोई संगठन-समितिमें न होना चाहिए, यह मैंने सुझाया । यह सूचना स्वीकृत हुई। लोकमान्यने श्री केलकरका और देशबंधने श्री आई० बी० सेनका नाम दिया। यह विधान-समिति एक दिन भी साथ मिलकर न बैठी। फिर भी हमने अपना कार्य चला लिया। इस विधानके संबंध मुझे कुछ अभिमान है। मैं मानता हूं कि इसके अनुसार काम लिया जा सके तो आज हमारा बेड़ा पार हो सकता है । यह तो जब कभी हो; परंतु मैं मानता हूं कि इस जवाबदेही को लेनेके बाद ही मैंने कांग्रेसमें सचमुच प्रवेश किया । ३६ खादीका जन्म मझे याद नहीं कि सन १९०८ तक मैंने चरखा अथवा करघा देखा हो। फिर भी मैंने 'हिंद-स्वराज्य' में यह माना है कि चरखे द्वारा भारतकी गरीबी मिटेगी। और जिस मार्गसे देशकी भुखमरी मिटेगी उसीसे स्वराज्य भी मिलेगा। यह तो एक ऐसी बात है कि जिसे सब कोई समझ सकते हैं। जब मैं सन् १९१५ में दक्षिण अफिकासे भारत आया, उस समय भी मैंने चरखाके दर्शन नहीं किये थे। आश्रम खोलनेपर एक करघा ला रक्खा । करघा ला रखने में भी मुझे बड़ी कठिनाई हुई। हम सब उसके प्रयोगसे अपरिचित थे, अतः करघा प्राप्त कर लेने.. भरसे वह चल तो नहीं सकता था। हममें या तो कलम चलानेवाले इकटठे हुए. थे, या व्यापार करना जाननेवाले थे; कारीगर कोई भी नहीं था। इसलिए करघा मिल जानेपर भी बुनाईका काम सिखानेवाले की जरूरत थी । काठियावाड़ और पालनपुरसे करघा मिला और एक सिखानेवाला भी आगया। पर उसने अपना सारा हुनर नहीं बताया; लेकिन मगनलाल गांधी ऐसे नहीं थे कि हाथमें लिये हुए कामको झट छोड़ दें। उनके हाथमें कारीगरी तो थी ही, अतः उन्होंने बनाईका काम पूरी तरह जान लिया और फिर एक-के-बाद-एक नये बुनकर पाश्रममें तैयार हो गये। हमें तो अपने कपड़े तैयार करके पहनने थे। इसलिए अबसे मिलके
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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