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________________ ४७४ आत्म-कथा : भाग ५ ३३ 'हिमालय-जैसी भूल' अहमदाबादकी सभाके बाद मैं तुरंत नडियाद गया है 'हिमालयजैसी भूल'के नामसे जो शब्द-प्रयोग प्रचलित हो गया है, उसका प्रयोग मैंने पहले-पहल नडियादमें किया था। अहमदाबादमें ही मुझे अपनी भूल जान पड़ने लगी थी; किंतु नडियादमें वहांकी स्थितिका विचार करते हुए खेड़ा जिलेके बहुतसे आदमियोंके गिरफ्तार होनेकी बात सुनते हुए, जिस सभामें मैं इन घटनाओंपर भाषण कर रहा था, वहींपर मुझे एकाएक खयाल हुआ कि खेड़ा जिलेके तथा ऐसे ही दूसरे लोगोंको सविनय भंग करनेके लिए निमंत्रण देने में मैंने उताक्लो करनेकी भूल की थी, और वह भूल मुझे हिमालय-जैसी बड़ी जान पड़ी । ____ मैंने इसे कबूल किया, इसलिए मेरी खूब ही हंसी हुई। तो भी मुझे यह कबूल करनेके लिए पश्चात्ताप नहीं हुआ है। मैंने यह हमेशा माना है कि जब हम दूसरेके गज-बराबर दोषको रज-समान देखें और अपने राई-जैसे जान पड़नेवाले दोषको पर्वत जैसा देखना सीखेंगे तभी हम अपने और दूसरेके दोषोंका ठीक-ठीक हिसाब लगा सकेंगे। मैंने यह भी माना है कि सत्याग्रही बननेके इच्छुकको तो इस सामान्य नियमका पालन बहुत ही सूक्ष्मतासे करना चाहिए। ___ • अब हम यह देखें कि वह हिमालय-जैसी दिखाई पड़नेवाली भूल थी क्या ? कानूनका सविनय भंग उन्हीं लोगोंसे हो सकता है, जिन्होंने कानूनको विनय-पूर्वक स्वेच्छासे मान लिया हो--उसका पालन किया हो। बहुतांशमें हम कानूनके भंगसे होनेवाली सजाके डरसे उसका पालन करते हैं। इसके अलावा यह बात विशेषकर उन कानूनोंपर लागू पड़ती है, जिनमें नीति-अनीतिका सवाल नहीं होता। कानून हो, या न हो, सज्जन माने जानेवाले लोग एकाएक चोरी नहीं करेंगे; मगर तो भी रातको बाइसिकलकी बत्ती जलानेके नियममेंसे छटक जानेमें भले आदमीको भी क्षोभ नहीं होगा। और ऐसे नियम पालनेकी कोई सलाह भी दे, तो भले लोग भी उसका पालन करनेको झट तैयार नहीं होंगे। किंतु जब कि यह कानून बन जाता है, उसका भंग करनेसे जुर्मानेका भय रहता है,
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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