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________________ ४७२ आत्म-कथा : भाग ५ क्या हुआ है ? लोग तो सभी जगह पागल-से हो गये हैं। मुझे भी अभी तो पूरी खबरें नहीं मिली हैं। कितनी ही जगह तार भी टूटे हैं। मैं तो आपसे कहता हूं कि इस सारे उपद्रवकी जिम्मेदारी आपके सिर है ।" ___मैं बोला-- “मेरी जिम्मेदारी जहां होगी, वहां उसे मैं अपने सिर प्रोढ़े बिना नहीं रहूंगा। अहमदाबादमें लोग अगर कुछ भी करें तो मुझे आश्चर्य और दुःख होगा। अमृतसरके बारेमें मैं कुछ नहीं जानता। वहां तो मैं कभी गया भी नहीं हूं। वहां मुझे तो कोई जानता भी नहीं है; किंतु मैं इतना जानता हूं कि पंजाब सरकारने यदि मुझे वहां जानेसे रोका न होता तो मैं शांति बनाये रखनेमें बहुत हाथ बंटा सकता था। मुझे रोककर सरकारने लोगोंको भड़का दिया है।" .. इस तरह हमारी बातें चलीं। हमारे मतमें मेल मिलनेकी संभावना नहीं थी। ___चौपाटीपर सभा करने और लोगोंको शांति पालन करनेके लिए समझानेका अपना इरादा जाहिर करके मैंने उनसे छुट्टी ली । चौपाटी पर सभा हुई। मैंने लोगोंको शांतिके बारेमें और सत्याग्रहकी मर्यादाके बारेमें समझाया और कहा- “सत्याग्रह सच्चेका खेल है। लोग अगर शांतिका पालन न करें तो मुझसे सत्याग्रहकी लड़ाई कभी पार न लगेगी।" ___अहमदाबादसे श्री अनसूयाबहनको भी खबर मिल चुकी थी कि वहां हुल्लड़ हो गया है। किसीने अफवाह उड़ा दी थी कि वह भी पकड़ी गई हैं। इससे मजदूर पागल-से बन गये। उन्होंने हड़ताल की और हुल्लड़ भी किया। एक सिपाहीका खून भी हो गया था । .. मैं अहमदाबाद गया। नडियादके पास रेलकी पटरी उखाड़ डालनेका भी प्रयत्न हुआ था। वीरमगाममें एक सरकारी नौकरका खून हो गया था। जब मैं अहमदाबाद पहुंचा, तो उस समय वहां मार्शल-लॉ जारी था। लोग भयभीत हो रहे थे । लोगोंने जैसा किया वैसा भरा और उसका व्याज भी पाया । ... कमिश्नर मि० प्रैटके पास मुझे ले जानेके लिए स्टेशनपर आदमी खड़ा था। मैं उनके पास गया। वह खूब गुस्से में थे। मैंने उन्हें शांतिसे उत्तर दिया। जो खून हुअा था, उसके लिए अपना खेद प्रकट किया। मार्शल-लॉकी अनावश्यकता भी बतलाई और जिसमें शांति फिरसे स्थापित हो वैसे उपाय, जो करने उचित
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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