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________________ आत्म-कथा : भाग ५ यह है कि अगर खुशहाल लोग दे दें तो जो असमर्थ हैं वे घबराहटमें पड़कर अपनी चाहे जो वस्तु बेचकर या कर्ज करके लगान चुकावेंगे और दुःख भोगेंगे। हम मानते हैं कि ऐसी हालतमें गरीबोंका बचाव करना समर्थोंका धर्म है।" । इस लड़ाईके वर्णनके लिए मैं अधिक प्रकरण नहीं दे सकता। इसलिए कितने ही मीठे संस्मरण छोड़ देने पड़ेंगे । जो इस महत्त्वपूर्ण लड़ाईका विशेष हाल जानना चाहें, उन्हें श्री शंकरलाल परीखका लिखा 'खेड़ाकी लड़ाईका सविस्तर और प्रामाणिक इतिहास' पढ़ जानेकी मेरी सलाह है ।' २४ 'प्याज-चोर' चंपारन हिंदुस्तानके एक ऐसे कोने में पड़ा था और वहांकी लड़ाईको अखबारोंसे इस तरह अलग रक्खा जा सका था कि वहां बाहरसे देखनेवाले नहीं आते थे। परंतु खेड़ाकी लड़ाईकी खबर अखबारों में छप चुकी थी। गुजरातियोंकी इस नई चीजमें खूब दिलचस्पी हो रही थी। वे धन लुटानेको तैयार थे। यह बात तुरंत ही उनकी समझमें नहीं आती थी कि सत्याग्रहकी लड़ाई धनसे नहीं चल सकती, उसे धनकी जरूरत कम-से-कम रहती है। मना करने पर भी बंबईके सेठोंने जरूरतसे अधिक धन दिया था और लड़ाईके अंतमें उसमेंसे कुछ रकम बची भी थी। - दूसरी ओर सत्याग्रही सेना को भी सादगीका नया पाठ सीखना बाकी था । यह तो नहीं कह सकते कि उन्होंने पूरा पाठ सीख लिया था; किंतु हां, अपने रहन-सहन में उन्होंने बहुत कुछ-सुधार जरूर कर लिया था । पाटीदारोंके लिए भी इस प्रकारकी लड़ाई नई ही थी। गांव-गांवमें घूमकर उसका रहस्य समझाना पड़ता था। यह समझाकर लोगोंका भय दूर करना मुख्य काम था कि सरकारी अफसर प्रजाके मालिक नहीं किंतु नौकर हैं, उसके पैसेसे तनख्वाह पाने वाले हैं और निर्भय बनते हुए भी उन्हें विनयके पालन ' यह पुस्तक गुजराती में है।-अनु०
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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