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________________ ४४० आत्म-कथा : भाग ५ और निष्फल हुए । दो-तीन मिनट ठीक-ठीक चले और फिर बंधी-बंधाई पंक्ति टूट जाती। मजदूरों के नेताओंने खूब प्रयत्न किया, मगर वे कुछ इंतजाम नहीं कर सके । अंतमें भीड़, शोरगुल और हमला ऐसा हुआ कि कितनी ही मिठाई कुचलकर बरबाद गई । मैदान में बांटना बंद करना पड़ा और बची हुई मिठाई मुश्किल से सेठ अंबालालके मिर्जापुर वाले मकानमें पहुंचाई जा सकी। यह मिठाई दूसरे दिन बंगलेके मैदानमें ही बांटनी पड़ी। इसमेंका हास्यरस स्पष्ट है । ‘एक टेक' वाले पेड़के पास मिठाई बांटी न जा सकनेके कारणोंको ढूंढ़नेपर हमने देखा कि मिठाई बंटनेकी खबर पाकर अहमदाबादके भिखारी वहां आ पहुंचे थे और उन्होंने कतार तोड़कर मिठाई छीनने की कोशिशें की। यह करुण रस था। यह देश फाके-कशीसे ऐसा पीड़ित है कि भिखारियोंकी संख्या बढ़ती ही जाती है और वे खाने-पीनेकी चीजें प्राप्त करने के लिए आम मर्यादाको तोड़ डालते हैं। धनिक लोग ऐसे भिखारियोंके लिए काम ढूंढ़ देने के बदले उन्हें भीख दे-देकर पालते हैं । २३ खेड़ामें सत्याग्रह मजदूरोंकी हड़ताल पूरी होनेके बाद मुझे दम मारनेकी भी फुरसत न मिली और खेड़ा जिलेके सत्याग्रहका काम उठा लेना पड़ा। खेड़ा जिलेमें अकालके जैसी स्थिति होनेसे वहांके पाटीदार लगान माफ करवानेके लिए प्रयत्न कर रहे थे। इस संबंधमें श्री अमृतलाल ठक्करने जांच करके रिपोर्ट भेजी थी। मैंने कुछ भी पक्की सलाह देने के पहले कमिश्नरसे भेंट की। श्री मोहनलाल पंड्या और श्री शंकरलाल परीख अथक परिश्रम कर रहे थे। स्व० गोकुलदास कहानदास परीख और श्री विठ्ठलभाई पटेलके द्वारा वे धारासभामें हलचल करा रहे थे। सरकारके पास शिष्ट मंडल गये थे। ___इस समय मैं गुजरात-सभाका अध्यक्ष था। सभाने कमिश्नर और गवर्नरको अर्जियां दी, तार दिये, कमिश्नरके अपमान सहन किये ; उनकी धमकियां पी गई। उस समय के अफसरोंका रोबदाब अव तो हास्यजनक लगता है । अफ
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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