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अध्याय २१ : आश्रमकी झांकी
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बातचीत करता और उन्हें इंसाफ करनेके लिए समझाता । " हमें भी तो अपनी टेक रखनी है । हमारा और मजदूरोंका वाप-बेटोंका संबंध है । .... उसके बीच यदि कोई पड़ना चाहे तो इसे हम कैसे सहन कर सकते हैं ? वाप-बेटोंमें पंचकी क्या जरूरत है ? यह जवाब मुझे मिलता ।
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श्रमकी झांकी
मजदूर - प्रकरणको आगे ले चलने के पहले श्राश्रमकी एक झलक देख लेने की आवश्यकता है | चंपारनमें रहते हुए भी मैं आश्रमको भूल नहीं सकता था । कभी-कभी वहां आ भी जाता था ।
कोचर अहमदाबाद के पास एक छोटा-सा गांव है । श्राश्रमका स्थान इसी गांव में था । कोचरबमें प्लेग शुरू हुआ । बालकोंको मैं बस्ती के भीतर सुरक्षित नहीं रख सकता था । स्वच्छताके नियमोंका पालन चाहे लाख करें, मगर आस-पास की गंदगी से आश्रमको अछूता रखना असंभव था । कोचरबके लोगोंसे स्वच्छता के नियमों का पालन करवानेकी प्रथवा ऐसे समय में उनकी सेवा करने की शक्ति हममें न थी । हमारा आदर्श तो आश्रमको शहर या गांवसे दूर रखना था, हालांकि इतना दूर नहीं कि वहां जाने में बहुत मुश्किल पड़े । श्राश्रमको प्राश्रम के रूपमें सुशोभित होनेके पहले उसे अपनी जमीनपर खुली जगहमें स्थिर तो हो ही जाना था ।
इस महामारीको मैंने कोचरब छोड़नेका नोटिस माना । श्री पुंजाभाई हीराचंद आश्रम के साथ बहुत निकट संबंध रखते और आश्रमकी छोटी-बड़ी सेवायें निरभिमानं भावसे करते थे । उन्हें अहमदावाद के काम-काजका बहुत अनुभव था। उन्होंने आश्रम के लायक आवश्यक जमीन तुरंत ही ढूंढ़ देनेका उठाया | कोचरबके उत्तर-दक्षिणका भाग में उनके साथ घूम गया । फिर मैं उनसे कहा कि उत्तरकी ओर तीन-चार मील दूरपर अगर जमीनका टुकड़ा मिले तो खोजिए । अव जहांपर ग्राश्रम है, वह जमीन उन्हींकी ढूंढी हुई है ।