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________________ ४२२ आत्म-कथा : भाग ५ इंसाफ करनेके लिए तत्पर नजर आया। उसने कहा कि आप जो कुछ कागजपत्र या और कुछ देखना चाहें, देख सकते हैं । जब कभी मिलना चाहें, जरूर मिल सकते हैं । · दूसरी तरफ सारे भारतवर्षको सत्याग्रहका अथवा कानून के सविनय भंगका पहला स्थानिक पदार्थ पाठ मिला । अखबारोंमें इस प्रकरणकी खूब चर्चा चली और चंपारनको तथा मेरी जांचको अकल्पित विज्ञापन मिल गया । मुझे अपनी जांचके लिए जहां एक प्रोर सरकारके निष्पक्ष रहने की जरूरत थी, तहां दूसरी ओर अखबारोंमें चर्चा होने की और उनके संवाददाताओंकी जरूरत नहीं थी । यही नहीं, बल्कि उनकी कड़ी टीका और जांचकी बड़ी-बड़ी रिपोर्टों से हानि होने का भी भय था । इसलिए मैंने मुख्य-मुख्य अखबारोंके संपादकोंसे अनुरोध किया कि “ आप अपने संवाददाताओं को भेजने का खर्च न उठावें ।... जितनी बातें प्रकाशित करने योग्य होंगी, वह मैं आपको खुद ही भेजता रहूंगा और खबर भी देता रहूगा । इधर चंपारन निलहे मालिक खूब बिगड़े हुए थे, यह मैं जानता था; और यह भी मैं समझता था कि अधिकारी लोग भी मनमें खुश न रहते होंगे । अखबारोंमें जो झूठी-सच्ची खबरें छपतीं उनसे वे और भी चिढ़ते । उनकी चिढ़का असर मुझपर तो क्या होता; परंतु बेचारे गरीब, डरपोक रैय्यतपर उनका गुस्सा उतरे बिना न रहता और ऐसा होनेसे जो वास्तविक स्थिति में जानना चाहता था उसमें विघ्न पड़ता । निलहों की तरफसे जहरीला आंदोलन शुरू हो गया था । उनकी तरफसे अखबारोंमें मेरे तथा मेरे साथियोंके विषय में मनमानी - झूठी बातें फैलाई जाती थीं; परंतु मेरी अत्यंत सावधानी के कारण, और छोटीसे-छोटी बातमें भी सत्यपर दृढ़ रहने की आदत के कारण, उनके सब तीर बेकार गये । बृजकिशोरबाबूकी अनेक तरहसे निंदा करनेमें निलहोंने किसी बात की कमी न रक्खी थी; परंतु वे ज्यों-ज्यों उनकी निंदा करते गये त्यों-त्यों बृजकिशोरबाबूकी प्रतिष्ठा बढ़ती गई । ऐसी नाजुक हालत में मैंने संवाददातानोंको वहां आनेके लिए बिलकुल उत्साहित नहीं किया | नेताओं को भी नहीं बुलाया । मालवीयजी ने मुझे कहला
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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