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________________ आत्म-कथा : भाग ५ पर इससे सहायक मित्र-मंडली में बड़ी खलबली मची । जिस कुएं में बंगले के मालिकका भाग था उसमेंसे पानी भरने में दिक्कत आने लगी । चरस हांकनेवाले को भी यदि हमारे पानी के छींटे लग जाते तो उसे छूत लग जाती । उसने हमें गालियां देना शुरू किया । दूधाभाईको भी वह सताने लगा । मैंने सबसे कह रक्खा था कि गालियां सह लेना चाहिए और दृढ़तापूर्वक पानी भरते रहना चाहिए । हमको चुपचाप गालियां सुनते देखकर चरसवाला शर्मिंदा हुआ और उसने हमारा पिंड छोड़ दिया; परंतु इससे आर्थिक सहायता मिलनी बंद हो गई । जिन भाइयोंने पहले से उन अछूतोंके प्रवेशपर भी, जो श्राश्रमके नियमों का पालन करते हों, शंका खड़ी की थी उन्हें तो यह आशा ही नहीं थी कि आश्रम में कोई अंत्यज आ जायगा । इधर आर्थिक सहायता बंद हुई, उधर हम लोगों के बहिष्कारकी अफवाह मेरे कानपर आने लगी । मैंने अपने साथियोंके साथ यह विचार कर रक्खा था कि यदि हमारा बहिष्कार हो जाय और हमें कहीं से सहायता न मिले तो भी हमें अहमदाबाद न छोड़ना चाहिए । हम अछूतोंके मुहल्लों में जाकर बस जायेंगे और जो कुछ मिल जायगा उसपर अथवा मजदूरी करके गुजर कर लेंगे । 1 ४०४ अंतको मगनलालने मुझे नोटिस दिया कि अगले महीने आश्रमखर्च के लिए हमारे पास रुपये न रहेंगे । मैंने धीरजके साथ जवाब दिया--" तो हम लोग अछूतों के मुहल्लों में रहने लगेंगे । " मुझपर यह संकट पहली ही बार नहीं आया था; परंतु हर बार अखीरमें जाकर उस सांवलियाने कहीं-न-कहींसे मदद भेज दी है । मगनलाल इस नोटिसके थोड़े ही दिन बाद एक रोज सुबह किसी बालकने आकर खबर दी कि बाहर एक मोटर खड़ी है । एक सेठ आपको बुला रहे हैं । मैं मोटर के पास गया । सेठने मुझसे कहा - "मैं श्राश्रमको कुछ मदद देना चाहता हूं, आप लेंगे ? " मैंने उत्तर दिया- 'हां, आप दें तो मैं जरूर ले लूंगा । और इस समय तो मुझे जरूरत भी है । " " 16 'मैं कल इसी समय यहां आऊंगा तो आप आश्रम में ही मिलेंगे न ? " मैंने कहा – “ हां।" और सेठ अपने घर गये । दूसरे दिन नियत समयपर मोटरका भोंपू बजा । बालकोंने मुझे खबर की । वह सेठ अंदर नहीं आये ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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