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________________ ३९८ आत्म-कथा : भाग ५ प्रोर इन्होंने परीक्षा ली है तहां उन्होंने मेरे लिए ढालका भी काम दिया है। मैं मानता हूं कि इन व्रतोंने मेरी आयु बढ़ा दी है; इनकी बदौलत, मेरी धारणा है कि, मैं बहुत वार बीमारियों से बच गया हूं । ८ लक्ष्मण-भूला पहाड़ जैसे दीखनेवाले महात्मा मुंशीराम के दर्शन करने और उनके गुरुकुलको देखने जब मैं गया तब मुझे बहुत शांति मिली। हरद्वार के कोलाहल और गुरुकुलकी शांतिक भेद स्पष्ट दिखाई देता था । महात्माजी ने मुझपर भरपूर प्रेमकी दृष्टि की। ब्रह्मचारी लोग मेरे पाससे हटते ही नहीं थे । रामदेव से भी उसी समय मुलाकात हुई और उनकी कार्य-शक्तिको मैं तुरंत पहचान का था । यद्यपि हमारी मत भिन्नता हमें उसी समय दिखाई पड़ गई थी, फिर भी हमारे आपस में स्नेह-गांठ बंध गई । गुरुकुल में औद्योगिक शिक्षणका प्रवेश करने की आवश्यकता के संबंध में रामदेवजी तथा दूसरे शिक्षकोंके साथ में मेरा ठीक-ठीक वार्तालाप भी हुआ । इससे जल्दी ही गुरुकुलको छोड़ते हुए मुझे दुःख हुआ । लक्ष्मण झूलाकी तारीफ मैंने बहुत सुन रक्खी थी । ऋषिकेश गये बिना हरद्वार न छोड़ने की सलाह मुझे बहुत से लोगोंने दी। मैंने वहां पैदल जाना चाहा । एक मंजिल ऋषिकेशकी और दूसरी लक्ष्मण- झूलेकी की । ऋषिकेश में बहुत से संन्यासी मिलनेके लिये आये थे । उनमेंसे एकको मेरे जीवन क्रम में बहुत दिलचस्पी पैदा हुई । फिनिक्स - मंडली मेरे साथ थी ही । हम सबको देखकर उन्होंने बहुतेरे प्रश्न पूछे । हम लोगोंमें धर्म-चर्चा भी हुई। उन्होंने देख लिया कि मेरे अंदर तीव्र धर्मभाव है । मैं गंगा स्नान करके आया था और मेरा शरीर खुला था । उन्होंने मेरे सिरपर न चोटी देखी और न बदनपर जनेऊ। इससे उन्हें दुःख हुआ और उन्होंने कहा- " 'आप हैं तो आस्तिक, परंतु शिखा सूत्र नहीं रखते, इससे हम जैसोंको दुःख होता है। हिंदू-धर्मकी ये दो बाह्य संज्ञाएं हैं और प्रत्येक हिंदूको इन्हें धारण
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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