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________________ अध्याय ६ : दुःखद प्रसंग-१ है उसे दूसरी भाषाओं का ज्ञान सुगम हो जाता है । सच पूछिए तो हिंदी, गुजराती, संस्कृत ये एक भाषा मानी जा सकती हैं। यही फारसी और अरबी के लिए कह सकते हैं। फारसी यद्यपि संस्कृतसे मिलती-जुलती है, और अरबी हिब्रूसे; तथापि दोनों भाषाएं इस्लामके प्रादुर्भावके पश्चात् फली-फूली हैं, इसलिए दोनोंमें निकट संबंध है। उर्दू को मैंने पृथक् भाषा नहीं माना, क्योंकि उसके व्याकरणका समावेश हिंदीमें होता है। अलबना उसके शब्द फारसी और अरबी ही हैं। ऊंचे दरजेकी उर्दू जाननेके लिए अरबी और फारसी जानना आवश्यक होता है, जैसा कि उच्च कोटिकी गुजराती, हिंदी, बंगला, मराठी जाननेवालेके लिए संस्कृत जानना ज़रूरी है। दुःखद प्रसंग-१ में पहले कह पाया हूं कि हाई स्कूल में मेरी बहुत कम लोगोंसे निजी मित्रता थी। यों जिन्हें घनिष्ट कह सकते हैं ऐसे मित्र तो मेरे कुल दो ही थे, सो भी जुदाजुदा समयपर । उनमें एककी मित्रता अधिक समयतक न निभी, हालांकि मैंने अपनी तरफसे उसे नहीं तोड़ा। दूसरेसे मित्रता करनेके कारण पहले मित्रने मेरा साथ छोड़ दिया। पर वह दूसरी मित्रता मेरे जीवनका एक दुःखद प्रकरण है। यह संग बहुत दिनोंतक चला। एक सुधारककी दृष्टि रखकर मैंने यह मित्रता की थी। उस व्यक्तिकी मित्रता पहले मेरे मंझले भाईके साथ थी। वह उनका सहपाठी था। मैं उसके कई ऐबोको जान पाया था, परंतु मैंने उसे अपना वफादार साथी मान लिया था। मेरी माताजी, बड़े भाई और धर्मपत्नी तीनोंको उसकी सोबत बुरी मालूम पड़ती थी। पत्नीकी चेतावनीपर तो मैं--अभिमानी पति--क्यों ध्यान देने लगा ? हां, माताकी बातको तो मैं टाल ही नहीं सकता श्रा । बड़े भाईकी भी माननी पड़ती। परंतु मैंने उन्हें यों समझा दिया--"आप उसी जो बुराइयां बताते हैं, उन्हें तो मैं जानता हूं। पर उसके गुणोंको आप नहीं जानते । मझे बह ग्व राब गस्ने नहीं ले जा सकता; क्योंकि मैंने उसके साथ संबंध केवल उसे सुधारने के लिए बांधा है। मुझे विश्वास है कि यदि वह सुधर
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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