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अध्याय ३५ : अच्छे-बुरेका मेल
इस प्रकार रूल मारनेका पश्चात्ताप आजतक होता रहता है ।
मैं समझता हूं कि उसे पीटकर मैंने उसे अपनी आत्माकी सात्विकता का नहीं, बल्कि अपनी पशुताका दर्शन कराया था ।
मैंने बच्चोंको पीट-पीटकर सिखाने का हमेशा विरोध किया है । सारी जिंदगी में एक ही अवसर मुझे याद पड़ता है जब मैंने अपने एक लड़केको पीटा था । मेरा यह रूल मार देना उचित था या नहीं, इतका निर्णय में श्राजतक नहीं कर सका । इस दंडके प्रौचित्य के विषय में अब भी मुझे संदेह है; क्योंकि उसके मूल ' में को भरा हुआ था और मनसे सजा देनेका भाव था । यदि उसमें केवल मेरे दुःखका ही प्रदर्शन होता तो मैं उस दंडको उचित समझता; परंतु उसमें मिली-जुली भावनाएं थीं। इस घटना के बाद तो में विद्यार्थियों को सुधारने की और भी अच्छी तरकीब जान गया । यदि इस मौकेपर उस कलासे काम लिया होता तो क्या फल निकलता, यह में नहीं कह सकता । वह युवक तो इस बात को उसी समय भूल गया । मैं नहीं कह सकता कि वह बहुत सुधर गया होगा; परंतु इस प्रसंगने मेरे इन विचारोंको बहुत गति दे दी कि विद्यार्थीके प्रति शिक्षकका क्या धर्म है। उसके बाद भी युवकोंसे ऐसा ही कसूर हुआ है; परंतु मैंने दंडनीतिका प्रयोग कभी नहीं किया । इस तरह श्रात्मिक ज्ञान देनेका प्रयत्न करते हुए मैं खुद आत्माके गुणको अधिक जान सका ।
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अच्छे बुरेका मेल
टॉल्स्टाय आश्रम मि० केलनबेकनं मेरे सामने एक प्रश्न खड़ा कर दिया था । इसके पहले मैंने उसपर कभी विचार नहीं किया था । श्राश्रममें कितने ही लड़के बड़े ऊधमी और वाहियात थे, कई श्रावारा भी थे । उन्हींके साथ मेरे तीन लड़के रहते थे । दूसरे लड़के भी थे, जिनका कि लालन-पालन मेरे लड़कोंकी तरह हुआ था; परंतु मि० केलनबेकका ध्यान तो इसी बात की तरफ था कि वे आवारा लड़के और मेरे लड़के एक साथ इस तरह नहीं रह सकते । एक दिन उन्होंने कहा - "आपका यह सिलसिला मुझे बिलकुल ठीक नहीं मालूम