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________________ आत्म-कथा : भाग ४ डरबन पहुंचकर मैंने आदमी मांगे। बहुत लोगोंको जरूरत न थी । हम चौबीस आदमी तैयार हुए। उनमें मेरे अलावा चार गुजराती थे । शेष मदरास प्रांतके गिरमिट मुक्त हिंदुस्तानी थे और एक पठान था । ३२० मुझे श्रीषधि विभाग के मुख्य अधिकारीने इन टुकड़ी में 'सारजंट मेजर' का स्थायी पद दिया और मेरे पसंद किये दूसरे दो सज्जनोंको 'सारजंट' की और एक को 'कारपोल'की पदवियां दीं। वर्दी भी सरकारकी तरफसे मिली । इसका कारण यह था कि एक तो काम करनेवालों के श्रात्म-सम्मानकी रक्षा हो, दूसरे काम सुविधा पूर्वक हो, और तीसरे ऐसी पदवी देनेका वहां रिवाज भी था । इस टुकड़ीने छ: सप्ताहतक सतत सेवा की । 'बलवे' के स्थलपर जाकर मैंने देखा कि वहां 'बलवा' जैसा कुछ नहीं था । कोई सामना करता हुआ दिखाई नहीं पड़ा। उसे 'बलवा' माननेका कारण यह था कि एक जुलू सरदारने जुलू लोगोंपर बैठाये नये करको न देनेकी सलाह उन्हें दी थी और एक सारजंटको, जो वहां कर वसूल करनेके लिए गया था, मार डाला था । जो भी हो, मेरा हृदय तो इन जुलूनों की तरफ था और अपनी छावनी में पहुंचनेपर जब हमें खासकरके जुलू घायलोंकी ही शुश्रूषाका काम दिया गया तब तो मुझे बड़ी खुशी हुई। उस डाक्टर अधिकारी ने हमारी इस सेवाका स्वागत करते हुए कहा -- “गोरे लोग इन घायलोंकी सेवा करनेके लिए तैयार नहीं होते । मैं अकेला क्या करता ? इनके घाव खराब हो रहे हैं । आप आ गये, यह अच्छा हुा । इसे मैं इन निरपराध लोगोंपर ईश्वरकी कृपा ही समझता हूं । यह कहकर मुझे पट्टियां और जंतुनाशक पानी दिया और उन घायलोंके पास ले गये। घायल हमें देखकर बड़े प्रानंदित हुए । गोरे सिपाही जंगलमें से झांक-झांककर हमको घाव धोने से रोकने की चेष्टा करते और हमारे न सुननेपर वे जुलू लोगों को जो बुरीबुरी गालियां देते उन्हें सुनकर हमें कानोंमें उंगलियां देनी पड़तीं । , धीरे-धीरे इन गोरे सिपाहियोंके साथ भी मेरा परिचय हुआ और फिर उन्होंने मुझे रोकना बंद कर दिया । इस सेनामें कर्नल स्पाक्स और कर्नल बायली थे, जिन्होंने १८९६ में मेरा घोर विरोध किया था । वे मुझे इस काम में सम्मिलित देखकर चकित हो गये । मुझे खास तौरपर बुलाकर उन्होंने धन्यवाद दिया और जनरल मैकेंजीके पास ले जाकर उनसे मेरी मुलाकात करवाई ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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