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आत्म-कथा : भाग ४
और उसमें बालकोंको भी शामिल करनेका उद्योग किया गया ।
बाजार से रोटी (डबल रोटी) खरीदने के बदले घरमें हाथसे बिना खमीरी रोटी, कुनेकी बताई पद्धतिसे, बनाना शुरू किया । ऐसी रोटीमें मिलका टा काम नहीं दे सकता । फिर मिलके घाटे के बजाय हाथका घाटा इस्तेमाल करनेमें सादगी, तंदुरुस्ती और धन, सबकी अधिक रक्षा होती थी । इसलिए ७ पौंड खर्च करके हाथसे ग्राटा पीसनेकी एक चक्की खरीदी । इसका पहिया भारी था । इसलिए चलानेमें एकको दिक्कत होती थी और दो आदमी उसे ग्रासानीसे चला सकते थे । चक्की चलाने का काम खासकर पोलक, मैं और बच्चे करते थे । कभी-कभी कस्तूरबाई भी प्रा जातीं। हालांकि वह प्रायः उस समय रसोई करनेमें लगी रहतीं । श्रीमती पोलक के थानेपर वह भी उसमें जुट जाती । यह कसरत बालकोंके लिए बहुत अच्छी साबित हुई । उनसे मैंने यह अथवा कोई दूसरा काम जबरदस्ती कभी नहीं करवाया; परंतु वे एक खेल समझ कर उसका पहिया घुमाते रहते । थक जानेपर पहिया छोड़ देनेकी उन्हें छुट्टी थी । मैं नहीं कह सकता, क्या बात है कि क्या बालक और क्या दूसरे लोग, जिनका परिचय हम आगे करेंगे, किसीने कभी मुझे निराश नहीं किया है ।
यह नहीं कह सकते कि मंद और ढीठ लड़के मेरे नसीब में न हों; परंतु इनमें से बहुतेरे अपने जिम्मेका काम बड़ी उमंगसे करते । इस युगके ऐसे थोड़े ही बालक मुझे याद पड़ते हैं, जिन्होंने कामसे जी चुराया हो या कहा हो कि 'अब थक गये ।
घर साफ रखने के लिए एक नौकर था । वह कुटुंबीकी तरह रहता था और बच्चे उसके काममें पूरी-पूरी मदद करते थे । पाखाना उठा ले जानेके लिए म्युनिसिपैलिटीका नौकर आता था; परंतु पाखानेका कमरा साफ रखना, बैठक धोना aौरा काम नौकरसे नहीं लिया जाता था और न इसकी ग्राशा ही रक्खी. जाती थी । यह काम हम लोग खुद करते थे; क्योंकि उसमें भी बच्चोंको तालीम मिलती थी । इसका फल यह हुआ कि मेरे किसी भी लड़केको शुरू से ही पाखाना साफ करनेकी घिन न रही और आरोग्य के सामान्य नियम भी वे सहज ही सीख गये । जोहान्तवर्गमें कोई बीमार तो शायद ही पड़ते; परंतु यदि कोई बीमार होता तो उसकी सेवा प्रादिमें बालक अवश्य शामिल होते और वे इस कामको