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________________ ३०४ आत्म-कथा : भाग ४ १६ फिनिक्सकी स्थापना sien सुबह होते ही मैंने सबसे पहले वेस्टसे इस सबंधमें बातें की। 'सर्वोदय'का जो प्रभाव मेरे मनपर पड़ा वह मैंने उन्हें कह सुनाया और सुझाया कि 'इंडियन प्रोपीनियन'को एक खेतपर ले जायं तो कैसा ? वहां सब एक साथ रहें, एकसा भोजन-खर्च लें, अपने लिए सब खेती कर लिया करें और बचतके समय में 'इंडियन ओपीनियन'का काम करें। वेस्टको यह बात पसंद हुई। भोजन-खर्चका हिसाब लगाया गया तो कम-से-कम तीन पौंड प्रति मनुष्य प्राया। उसमें काले-गोरे का भेद-भाव नहीं रक्खा गया था । परंतु प्रेसमें काम करनेवाले तो कुल ८-१० आदमी थे। फिर सवाल यह था कि जंगलमें जाकर बसनेमें सबको सुविधा होगी या नहीं? दूसरा सवाल यह था कि सब एकसा भोजन-खर्च लेनेके लिए तैयार होंगे या नहीं ? आखिर हम दोनोंने तो यही तय किया कि जो इस तजवीजमें शरीक न हो सकें वे अपना वेतन ले लिया करें-- किंतु आदर्श यही रक्खा जाय कि धीरे-धीरे सब कार्यकर्ता संस्थावासी हो जायं । ___ इसी दृष्टिसे मैंने समस्त कार्य-कर्तामोंसे बातचीत शुरू की। मदनजीतको यह बात बिलकुल पसंद न हुई। उन्हें अंदेशा हुआ कि जिस चीजमें उन्होंने अपना जी-जान लगाया उसे मैं कहीं अपनी मूर्खतासे एकाध महीनेमें ही मिट्टी में न मिला दू। उन्हें भय हुआ कि इस तरह 'इंडियन ओपीनियन' बंद हो जायगा, प्रेस भी टूट जायगा और सब कार्यकर्ता भाग खड़े होंगे। ____ मेरे भतीजे छगनलाल गांधी उस प्रेसमें काम करते थे। उनसे भी मैने वेस्टके साथ ही बात की थी। उनपर परिवारका बोझ था; किंतु बचपनसे ही उन्होंने मेरे नीचे तालीम लेना और काम करना पसंद किया था । मुझपर उनका बहुत विश्वास था। इसलिए उन्होंने तो बिना दलील और हुज्जतके ही 'हां कर ली और तबसे आजतक वह मेरे साथ ही हैं। तीसरे थे गोविंद सामी मशीनमैन । बहु भी शामिल हो गये। दूसरे
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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