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अध्याय १८ : एक पुस्तकका चमत्कारी प्रभाव
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जहांतक मुझे याद है, लोकेशन जिस दिन खाली कराया गया, या तो उसी दिन या उसके दूसरे दिन उसमें आग लगा दी गई। एक भी चीजको वहांसे बचा लानेका लोभ म्यूनिसिपैलिटीने नहीं किया। इन्हीं दिनों और इसी कारण म्यूनिसिपैलिटीने अपने मार्केटकी सारी लकड़ीकी इमारतें भी जला डालीं, जिससे उसे कोई १० हजार पौंडकी हानि सहनी पड़ी। मार्केट में मरे चूहे पाये गये थे-इसलिए म्यूनिसिपैलिटीको इतने साहसका काम करना पड़ा। इसमें नुकसान तो बहुत बरदाश्त करना पड़ा, किंतु यह फल जरूर हुअा कि प्लेग आगे न बढ़ पाया और नगरवासी निःशंक हो गये ।
१८ एक पुस्तकका चमत्कारी प्रभाव इस प्लेगके बदौलत गरीब भारतवासियोंपर मेरा प्रभाव बढ़ा और उसके साथ मेरी वकालत और मेरी जिम्मेदारी भी बहुत बढ़ गई। फिर यूरोपियन लोगोंसे जो मेरा परिचय था वह भी इतना निकट होता गया कि उससे भी मेरी नैतिक जवाबदेही बढ़ने लगी ।
जिस तरह वेस्टसे मेरी मुलाकात निरामिष भोजनालयमें हुई, उसी तरह पोलकसे भी हो गई। एक दिन मेरे खानेकी मेजसे दूरकी मेजपर एक नवयुवक भोजन कर रहा था। उसने मुझसे मिलनेकी इच्छासे अपना नाम मुझतक पहुंचाया। मैंने उन्हें अपनी मेजपर खानेके लिए बुलाया और वह आये ।।
"मै 'क्रिटिक'का उप-संपादक हैं। प्लेग-संबंधी आपका पत्र पढ़नेके बाद आपसे मिलनेकी मुझे बड़ी उत्कंठा हुई। आज आपसे मिलनेका अवसर मिला है।
(मि० पीलककै शुद्ध भावने मुझे उनकी ओर खींचा। उस रातको हमारा एक-दूसरेसे परिचय हो गया और जीवन-संबंधी अपने विचारोंमें हम दोनोंको बहुत साम्य दिखाई दिया। सादा जीवन उन्हें पसंद था। किसी बातके पट जाने के बाद तुरंत उसपर अमल करनेकी उनकी शक्ति आश्चर्यजनक मालूम हुई। उन्होंने अपने जीवन में कितने ही परिवर्तन तो एकदम कर डाले ।