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________________ अध्याय १६ : महामारी - २ २६७. समझता हूं 1 इस महामारी फैल निकलते ही मैंने एक कड़ा पत्र अखबारोंमें लिखा था । उसमें यह बताया गया था कि लोकेशनके म्यूनिसिपैलिटी के कब्जे में आने के बाद जो लापरवाही वहां दिखाई गई उसकी तथा जो प्लेग फैला उसकी जिम्मेदार म्यूनिसिपैलिटी है। इस पत्रके बदौलत मि० हेनरी पोलकसे मेरी मुलाकात हुई और वही स्वर्गीय जोसेफ डोकसे भी मुलाकात होनेका एक कारण बन गया था । पिछले अध्यायमें मैं इस बातका जिक्र कर चुका हूं कि मैं एक निरामिष भोजनालय में भोजन करने जाता था। वहां मिस्टर ग्राल्बर्ट वेस्टसे मेरी भेंट हुई थी । रोज हम साथ ही भोजनालय में जाते और खानेके बाद साथ ही घूमने निकलते । मि० वेस्ट एक छोटेसे छापेखानेमें साझीदार थे। उन्होंने अखबारोंमें प्लेग -संबंधी मेरा वह पत्र पढ़ा और जब भोजनके समय भोजनालय में मुझे नहीं पाया तो बेचैन हो उठे । मैंने तथा मेरे साथी सेवकोंने प्लेगके दिनोंमें अपनी खुराक कम कर ली थी। बहुत समय से मैंने यह नियम बना रक्खा था कि जबतक किसी संक्रामक रोगका प्रकोप हो तबतक पेट जितना हल्का रक्खा जा सके उतना ही अच्छा । इसलिए मैंने शामका खाना बंद कर दिया था और दोपहरको भी ऐसे समय जाकर वहां भोजन कर प्राता जबकि इस तरहके खतरोंसे अपने को बचानेकी इच्छा करनेवाले कोई भोजनालय में न आते हों । भोजनालयके मालिकके साथ तो मेरा घनिष्ट परिचय था ही । उससे मैंने यह बात कह रक्खी थी कि मैं इन दिनों प्लेग के रोगियोंकी सेवा-शुश्रूषामें लगा हुआ हूं, इसलिए औरोंको अपनी छूतसे दूर रखना चाहता हूं । इस तरह भोजनालय में मुझे न देख कर मि० वेस्ट दूसरे या तीसरे ही दिन सुबह मेरे यहां आ धमके । मैं अभी बाहर निकलनेकी तैयारी कर ही रहा था कि उन्होंने आकर मेरे कमरेका दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खोलते ही वेस्ट बोले- " आपको भोजनालयमें न देखकर मैं चिंतित हो उठा कि कहीं आप भी प्लेग सपाटे में न आ गये हों ! इसलिए इस समय इसी विश्वाससे आया हूं कि आपसे अवश्य भेंट हो जायगी । मेरी किसी मददकी जरूरत हो तो जरूर
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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