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________________ २६२ आत्म-कथा: भाग ४ पंचायत बैठाई गई थी। म्युनिसिपैलिटी जितना हरजाना देना चाहती उतनी रकम यदि मकान-मालिक लेना मंजूर न करे तो उसका फैसला यह पंचायत करती और मालिकको वह मंजूर करना पड़ता। यदि पंचायत म्यूनिसिपैलिटीसे ज्यादा रकम देना तय करे तो मकान मालिकके वकीलका खर्च म्यूनिसिपैलिटीको चुकाना पड़ता था । ऐसे बहुतेरे दावोंमें मकान-मालिकोंने मुझे अपना वकील बनाया था। पर मैं इसके द्वारा रुपया पैदा करना नहीं चाहता था। मैंने उनसे पहले ही कह दिया था--"यदि तुम्हारी जीत होगी तो म्यूनिसिपैलिटीकी अोरसे खर्चको जोकुछ रकम मिलेगी उसीपर मैं संतोष कर लूंगा। तुम तो मुझे फी पट्टा दस पौंड दे देना, बस । फिर तुम्हारी जीत हो या हार ।" इसमेंसे भी लगभग आधी रकम गरीबोंके लिए अस्पताल बनवाने या ऐसे ही किसी सार्वजनिक काममें लगानेका अपना इरादा मैंने उनपर प्रकट कर दिया था । स्वभावतः ही इससे . सब लोग बहुत खुश हुए । लगभग ७० दावोंमें सिर्फ एकमें मेरे मवक्किलकी हार हुई। इससे फीसमें मुझे भारी रकम मिल गई। परंतु इसी समय 'इंडियन ओपीनियन'की मांग मेरे सिरपर सवार ही थी। इसलिए मुझे याद पड़ता है कि लगभग १६०० पौंडका चैक उसीमें काम आ गया था । इन दावोंकी पैरवीमें मैंने अपने खयालके अनुसार काफी परिश्रम किया था। मवक्किलोंकी तो मेरे आस-पास भीड़ ही लगी रहतं थी। इनमेंसे लगभग सब या तो बिहार इत्यादि उत्तर तरफके या तामिल-तेलगू इत्यादि दक्षिण प्रदेशके लोग थे । वे पहली गिरमिटमें आये थे और अब मुक्त होकर स्वतंत्र पेशा कर रहे थे । इन लोगोंने अपने दुःखोंको मिटानेके लिए, भारतीय व्यापारी-वर्गसे अलग अपना एक मंडल बनाया था। उसमें कितने ही बड़े सच्चे दिलके, उदारभाव रखनेवाले और सच्चरित्र भारतवासी थे। उनके अध्यक्षका नाम था श्री जेरामसिंह और अध्यक्ष न रहते हुए भी अध्यक्षके जैसे ही दूसरे सज्जन थे श्री बदरी। अब दोनों स्वर्गवासी हो चुके हैं। दोनोंकी तरफसे मुझे अतिशय सहायता मिली थी। श्री बदरीके परिचयमें मैं बहुत ज्यादा आया था और उन्होंने सत्याग्रहमें आगे बढ़कर हिस्सा लिया था। इन तथा ऐसे भाइयोंके द्वारा मैं उत्तर-दक्षिणके
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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