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________________ अध्याय ७ : मिट्टी और पानीके प्रयोग २६६ बुनियाद था तो तुरंत जाकर उससे माफी मांगते और अपना दिल साफ कर लेते । मुझे इनकी यह चेतावनी बिलकुल ठीक मालूम हुई । बदरीका रुपया तो मैं चुका सका था, परंतु यदि उस समय और एक हजार पौंड बरबाद किया होता तो उसको चुकाने की हैसियत मेरी बिलकुल नहीं थी । और माथे कर्ज ही करना पड़ता । कर्जके चक्कर में मैं अपनी जिंदगी में कभी नहीं पड़ा और उससे मुझे हमेशा अरुचि ही रही है। इससे मैंने यह सबक सीखा कि सुधार कार्यों के लिए भी हमें अपनी ताकत के बाहर पांव न बढ़ाना चाहिए। मैंने यह भी देखा कि इस कार्य में गीता के तटस्थ निष्काम कर्मके मुख्य पाठका अनादर किया था। इस भूलने प्रागेको मेरे लिए प्रकाश स्तंभका काम दिया । निरामिषाहार के प्रचारकी वेदीपर इतना बलिदान करना पड़ेगा, इसका अनुमान मुझे न था । मेरे लिए यह जबरदस्तीका पुण्य था । 60 मिट्टी और पानीके प्रयोग ज्यों-ज्यों मेरे जीवनमें सादगी बढ़ती गई त्यों-त्यों बीमारियोंके लिए दवा लेने की ओर जो अरुचि मुझे पहले हीसे थी वह भी बढ़ती गई । जब मैं डरबन में वकालत करता था तब डाक्टर प्राणजीवनदास मेहता मुझसे मिलने आये थे । उस समय मुझे कमजोरी रहा करती थी और कभी-कभी बदन सूज भी जाया करता था । उसका इलाज उन्होंने किया था और उससे मुझे लाभ भी हुआ था । इसके बाद देश जाने तक मुझे नहीं याद पड़ता कि मुझे कहने लायक कोई बीमारी हो । परंतु जोहान्सबर्ग में मुझे कब्ज रहा करता था और जब-तब सिर में भी दर्द हुआ करता था | इधर-उधर की दस्तावर दवायें ले लाकर तबियतको सम्हालता रहता था । खाने-पीने में तो मैं परहेजगार शुरूसे ही रहा हूं; पर उससे मैं कतई रोग मुक्त नहीं हुआ । मन बराबर यह कहता रहता था कि इस दवा के जंजालसे छूट जाऊं तो बड़ा काम हो । लगभग इसी समय मैंचेस्टर में 'नो ब्रेकफास्ट एसोसिएशन' की स्थापनाके समाचार मैंने पढ़े । उसकी खास
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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