SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्म-कथा : भाग १ आजायेगी---- भी इसलिए कि जो मध्य बिदु मने अपनी दुष्टि के सामन रखाः है, उसका कुछ संबंध उनके बोरेके साथ है। हम दोनों भाइयोंको राजकोटसे पोरबंदर ले गये। वहां हलदी लगाने इत्यादिकी जो विधियां हुई वे रोचक तो हैं, पर उनका वर्णन छोड़ देने ही लायक है । पिताजी दीवान थे तो क्या हुन, शेतो आखिम नौकर ही। फिर राजप्रिय थे, इसलिए और भी पराधीन । ठाकुर साहबने पारिबरी बरततक उन्हें जाने नदिया। फिर जब इजाजत दी भी तो दो दिन पहले, जयाक सवारीका जगहजगह इंतिजाम करना पड़ा। पर दया कुछ और ही सोच रहा था । जकोट पोरबंदर ६० कोस है। बैलगाडीते ५ दिनका रास्ता था। पिताजी तीन दिनमें आये। आखिरी मंजिलपर तांगा उलट गया । पिताजीको सख्त चोट आई। हाथ-पांव और वदनमें पट्टियां बांचे घर आये। हमारे लिए और उनके लिए भी विवाहका आनंद आधा रह गया। परंतु इससे विवाह थोड़े ही हक नकले थे ? लिखा मुहर्त नहीं टल सकता था और मैं तो विवाहके बाल-उल्लासमें पिताजीकी चोटको भूल ही गया । मैं जितना पित-भक्त था उतना ही विषय-भवत नी। यहां विषय से मतलब किसी एक इंद्रियके विषयसे नहीं, बल्कि भोग-मात्र है। यह होश तो अभी आना बाकी था कि गाता-पिताकी भक्तिके लिए पुत्रको अपने सब सुना छोड़ देने चाहिएं। ऐसा होते हुए भी, मानो इस भोगेच्छाको राजा मुझे मिलनी हो, मेरी जिंदगीमें एक ऐसी दुर्घटना हुई, जो मुझे आज भी बांटेकी तरह चुभती है । जब-जब निष्कुलानंदकी यह पंक्ति-- त्याग न टके रे बैराग बिना, करिये कोटि उपाय जो' गाता अथवा सुनता हूं, तब-तव यह दुर्धटना और कटु-प्रसंग मुझे याद आता है ओर शमिन्दा करता रहता है । . पिताजीने खुद मानो थप्पड़ मारकर अपना मुंह लाल रखना। शरीरमे चोट और पीड़ाके रहते हुए भी विवाह-शार्य में पूरा-पूरा योग दिया। पिताजी किस अवसरपर कहां-कहां बैठे थे, यह सब मुझे ज्यों-का-त्यों याद है ! बाल-विवाह पर विचार करते हुए पिताजीके कार्यपर जो टीका-टिप्पणी माज में कर रहा हूँ.. उनका सम्मान नी उस समय न प्रायः था। उस समय तो म नाना रचिकर
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy