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________________ ८ आत्म-कथा : भाग १ जीवित हैं। आज भी यदि में उन नाटकोंको पढ़ पाऊं तो मांसू प्राये बिना न रहें । ३ बाल-विवाह जी चाहता है कि यह प्रकरण मुझे न लिखना पड़े तो अच्छा; परंतु इस कथा में मुझे ऐसी कितनी ही कड़वी घंटें पीनी पड़ेंगी । सम्यके पुजारी होनेका दावा करके मैं इससे कैसे बच सकता हूं ? यह लिखते हुए मेरे हृदयको बड़ी व्यथा होती है कि १३ वर्षकी उम्र में मेरा विवाह हुआ । आज में जब १२-१३ वर्षके बच्चोंको देखता हूं और अपने विवाहका स्मरण हो आता है, तब मुझे अपनेपर तरस आने लगती हैं और उन बच्चोंको इस बात के लिए बधाई देनेकी इच्छा होती है कि वे मेरी दुर्गतसे अब तक बचे हुए हैं | तेरह सालकी उम्र में हुए मेरे इस विदाहके समर्थनमें एक भी नैतिक दलील मेरे दिमागमें नहीं आ सकती । पाठक यह न समझें कि में सगाईकी बात लिख रहा हूं । सगाईका तो होता है मां-बाप के द्वारा किया हुआ दो लड़के-लड़कियोंके विवाहका ठहराव - वाग्दान । सगाई टूट भी सकती है। सगाई हो जानेपर यदि लड़का मर जाय तो उससे कन्या विधवा नहीं होती । सगाईके मामलेमें वर-कन्याकी कोई पूछ नहीं होती। दोनोंको खबर हुए बिना भी सगाई हो सकती है । मेरी एक-एक कर तीन सगाइयां हुईं। किंतु मुझे कुछ पता नहीं कि ये कब हो गई। मुझमे कहा गया कि एक-एक करके दो कन्याएं मर गईं, तब मैं जान पाया कि मेरी तीन सगाइयां हुईं। कुछ ऐसा याद पड़ता हैं कि तीसरी सगाई सातेक सालकी उम्र हुई होगी। पर मुझे कुछ याद नहीं आता कि सगाईके समय मुझे उसकी खबर की गई हो। लेकिन विवाहमें तो वर-कन्याकी उपस्थिति प्रावश्यक होती उसमें धार्मिक विधि-विधान होते हैं । अतः यहां मैं मगाईकी नहीं, अपने विवाह की ही बात कर रहा हूं । विवाहका स्मरण तो मुझे अच्छी तरह है । पाठक जान ही गये हैं कि हम तीन भाई थे। सबसे बड़ेकी शादी हो
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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