SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आत्म-कथा : भाग ३ ___ आजके डा० रायमें और उस समयके प्रो० रायमें मुझे थोड़ा ही भेद दिखाई देता है। जैसे कपड़े उस समय पहनते थे आज भी लगभग वैसे ही पहनते है। हां, अब खादी आ गई है । उस समय खादी तो थी ही नहीं । स्वदेशी मिलोंके कपड़े होंगे। गोखले और प्रो० रायकी बातें सुनते हुए मैं न अघाता था; क्योंकि उनकी बातें या तो देश-हितके संबंधमें होती या होती ज्ञान-चर्चा । कितनी ही बातें दुःखद भी होती; क्योंकि उनमें नेताओंकी आलोचना भी होती थी। जिन्हें मैं महान योद्धा मानना सीखा था, वे छोटे दिखाई देने लगे। ___ गोखलेकी काम करनेकी पद्धतिसे मुझे जितना आनंद हुआ उतना ही बहुत-कुछ सीखा भी। वह अपना एक भी क्षण व्यर्थ न जाने देते थे। मैंने देखा कि उनके तमाम संबंध देश-कार्यके ही लिए होते थे। बातें भी तमाम देश-कार्यके ही निमित्त होती थीं। बातोंमें कहीं भी मलिनता, दंभ या असत्य न दिखाई दिया। हिंदुस्तान की गरीबी और पराधीनता उन्हें प्रतिक्षण चुभती थी। अनेक लोग उन्हें अनेक बातोंमें दिलचस्पी कराने आते । वे उन्हें एक ही उत्तर देते--"आप इस कामको कीजिए, मुझे अपना काम करने दीजिए, मुझे देशकी स्वाधीनता प्राप्त करनी है। उसके बाद मुझे दूसरी बातें सूझेंगी। अभी तो इस कामसे मुझे एक क्षण फुरसत नहीं रहती।" रानडे के प्रति उनका पूज्य भाव बात-बातमें टपक पड़ता था। 'रानडे ऐसा कहते थे', यह तो उनकी बातचीतका मानो ‘सूत-उवाच' ही था। मेरे वहां रहते हुए रानडेकी जयंती (या पुण्यतिथि, अब ठीक याद नहीं है) पड़ती थी । ऐसा जान पड़ा, मानो गोखले सर्वदा उसको मनाते हों। उस समय मेरे अलावा उनके मित्र प्रोफेसर काथवटे तथा दूसरे एक सज्जन थे। उन्हें उन्होंने जयंती मनाने के लिए निमंत्रित किया और उस अवसरपर उन्होंने हमें रानडेके कितने ही संस्मरण कह सुनाये। रानडे, तैलंग और मांडलिककी तुलना की थी। ऐसा याद पड़ता है कि तैलंगकी भाषा की स्तुति की थी। मांडलिककी सुधारकके रूपमें प्रशंसा की थी। अपने मवक्किलोंकी वह कितनी चिंता रखते थे, इनका एक उदाहरण दिया। एक बार गाड़ी चूक गई तो मांडलिक स्पेशल ट्रेन करके गये। यह घटना कह सुनाई। रानडेकी सर्वांगीण शक्तिका वर्णन करके बताया कि वह तत्कालीन अनगियोंमें सर्वोपरि थे। रानडे अकेले न्यायमूर्ति न थे। वह इति
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy