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________________ अध्याय २: बचपन बड़े-बूढ़ोंके ऐब न देखनेका गुण मेरे स्वभावमें ही था। बादको तो इन मास्टर साहबके दूसरे ऐब भी मेरी नजर में आये । फिर भी उनके प्रति मेरा आदर-भाव कायम ही रहा। मैं इतना जान गया था कि हमें बड़े-बूढ़ोंकी आज्ञा माननी चाहिए, जैसा वे कहें करना चाहिए; पर वे जो-कुछ करें उसके काजी हम न बने । इसी समय और दो घटनाएं हुई, जो मुझे सदा याद रही हैं। मामूली तौर पर मुझे कोर्सकी पुस्तकोंके अलावा कुछ भी पढ़नेका शौक न था। इस खयालसे कि अपना पाठ याद करना उचित है, नहीं तो उलाहना सहन न होगा और मास्टर साहबसे झूठ बोलना ठीक नहीं, मैं पाठ याद करता; पर मन न लगा करता। इससे सबक कई बार कच्चा रह जाता। तो फिर दूसरी पुस्तकें पढ़नेकी तो बात ही क्या ? परन्तु पिताजी एक श्रवण-पित-भक्ति नामक नाटक खरीद लाये थे, उसपर भेरी नजर पड़ी। उसे पढ़नको दिल चाहा। बड़े चावसे मैंने उने पढ़ा। इन्हीं दिनों शीशे में तसवीर दिखाने वाले लोग भी आया करते। उनमें मैंने यह चित्र भी देखा कि श्रवण अपने माता-पिताको कांवरमें बैठाकर तीर्थयात्राके लिए ले जा रहा है। ये दोनों चीजें मेरे अंतस्तल पर अंकित हो गई। मेरे मन में यह बात उठा करती कि मैं भी श्रवणकी तरह बनूं । श्रवण जब मरने लगा तो उस समयका उसके माता-पिताका विलाप अब भी याद है। उस ललित छंदको मैं बाजेपर भी बजाया करता । बाजा सीखनेका मुझे शौक था और पिताजी ने एक बाजा खरीद भी दिया था । है. इसी अरसेमें एक नाटक कंपनी आई और मुझे उसका नाटक देखनेकी छुट्टी मिली। हरिश्चंद्रका खेल था। इसको देखते मैं अधाता न था, वार-बार उसे देखनेको मन हुआ करता । पर यों बार-बार जाने कौन देने लगा ? लेकिन अपने मनमें मैंने इस नाटकको मैकड़ों बार खेला होगा। हरिश्चंद्रके सपने आते । नाही धुन ममाई कि हरिदचंद्रकी तरह सत्यवादी सब क्यों न हों ? ' यही धारणा जैमी कि हरिश्चंद्रके जैसा विपत्तियां भोगना, पर सत्यको न छोड़ना ही सच्चा सुंत्य है। मैंने तो यही मान लिया था कि नाटकमें जैसी विपत्तियां हरिश्चंद्रपर पड़ी हैं, वैसी ही वान्तवमें उसपर पड़ी होंगी। हरिश्चंद्रके दुःखोंको देखकर, उन्हें याद कर-कर, मैं खूब रोया हूं। आज मेरी बुद्धि कहती है कि संभव है, हरिश्चंद्र कोई ऐतिहासिक व्यक्ति न हों। पर मेरे हृदयमें तो हरिश्चंद्र और श्रवण आज भी
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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