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________________ अध्याय १ : जन्म ५ तीसरे दिन उपवास किया। एक साथ दो-तीन उपवास तो उनके लिए एक मामूली बात थी । एक चातुर्मासमें उन्होंने ऐसा व्रत लिया कि सूर्यनारायण के दर्शन होनेपर ही भोजन किया जाय । इस चौमासेमें हम लड़केलोग ग्रासमानकी तरफ देखा करते कि कब सूरज दिखाई पड़े और कब मां खाना खाय । सब लोग जानते हैं कि चौमासेमें बहुत बार सूर्य-दर्शन मुश्किलसे होते हैं। मुझे ऐसे दिन याद हैं, raft हमने सूर्यको निकला हुआ देखकर पुकारा है-- 'मां मां, वह सूरज निकला, ' और जबतक मां जल्दी-जल्दी दौड़कर भाती है, सूरज छिप जाता था। मां यह कहती हुई वापस जाती कि 'खैर, कोई बात नहीं, ईश्वर नहीं चाहता कि आज खाना मिले और अपने कामोंमें मशगूल हो जाती । ' माताजी व्यवहार कुशल थीं। राज दरबारकी सब बातें जानती थीं । रनवासमें उनकी बुद्धिमत्ता ठीक-ठीक ग्रांकी जाती थी। जब में बच्चा था, मुझे दरबारगढ़ में कभी-कभी वह साथ ले जाती और 'बामां - - साहब' ( ठाकुर साहबकी विधवा माता ) के साथ उनके कितने ही संवाद मुझे अब भी याद हैं । इन माता-पिता के यहां प्रश्विन वदी १२ संवत् १९२५ अर्थात् २ अक्तूबर १८६९ ईसवीको पोरबंदर अथवा सुदामापुरीमें मेरा जन्म हुआ । मेरा बचपन पोरबंदर में ही बीता । ऐसा याद पड़ता है कि किसी पाठशाला में में पढ़ने बैठाया गया था । मुश्किलसे कुछ पहाड़े पढ़ा होऊंगा । उस समय मैंने और लड़कोंके साथ मेहताजी -- मास्टर साहब को सिर्फ गाली देना सीखा था; इतना याद पड़ता है । और कोई बात याद नहीं प्राती । इससे यह अनुमान करता हूं कि मेरी बुद्धि मंद रही होगी और स्मरणशक्ति उस पंक्तियोंके कच्चे पापड़की तरह रही होगी जोकि हम लड़के गाया करते थे- एकड़े एक, पापड़ शेक, पापड़ कच्ची... मारो... पहली खाली जगह मास्टर साहबका नाम रहता था । उन्हें में अमर करना नहीं चाहता । दूसरी खाली जगहमें एक गाली रहती, जिसे यहां देनेकी श्रावश्यकता नहीं ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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