SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 205
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय २६ : 'जल्दी लौटो' १८५ प्रश्नका महत्व समझते थे । उन्होंने मेरी लंबी-लंबी बातचीत छापी, 'इंग्लिशमैन' के मि० सांडर्सने मुझे अपनाया । उनका दफ्तर मेरे लिए खुला था, उनका अखबार मेरे लिए खुला था । अपने अग्रलेख में कमीबेशी करनेकी भी छूट उन्होंने मुझे दे दी । यह भी कहूं तो अत्युक्ति नहीं कि उनका मेरा खासा स्नेह हो गया। उन्होंने भरसक मदद देनेका वचन दिया, मुझसे कहा कि दक्षिण अफ्रीका जानेके बाद भी मुझे पत्र लिखिएगा और वचन दिया कि मुझसे जो कुछ हो सकेगा करूंगा। मैंने देखा कि उन्होंने अपना यह वचन अक्षरश: पाला; और जबतक कि उनकी तबीयत खराब न हो गई, उन्होंने मेरे साथ चिट्ठी-पत्री जारी रक्खी। मेरी जिंदगी में ऐसे प्रकल्पित मीठे संबंध अनेक हुए हैं । मि० सांडर्सको मेरे अंदर जो सबसे अच्छी बात लगी वह थी अत्युक्तिका प्रभाव और सत्यपरायणता । उन्होंने मुझसे जिरह करनेमें कोरकसर न रक्खी थी । उसमें उन्होंने अनुभव किया कि दक्षिण अफ्रीकाके गोरोंके पक्षको निष्पक्ष होकर पेश करने में तथा उनकी तुलना करने में मैंने कोई कमी नहीं रक्खी थी । मेरा अनुभव कहता है कि प्रतिपक्षी के साथ न्याय करके हम अपने लिए जल्दी न्याय प्राप्त करते हैं । इस प्रकार मुझे अकल्पित सहायता मिल जानेसे कलकत्त में भी सभा करनेकी आशा बंधी ; पर इसी अरसे में डरबन से तार मिला --' पार्लमेंटकी बैठक जनवरी में होगी, जल्दी लौटो । इस कारण अखबारोंमें इस आशयकी एक चिट्ठी लिखकर कि मुझे दक्षिण अफ्रीका चला जाना जरूरी है, मैंने कलकत्ता छोड़ा और दादा अब्दुल्ला के एजेंटको तार दिया कि पहले जहाजसे जानेका इंतजाम करो। दादा अब्दुल्लाने खुद ' कुरलैंड ' जहाज खरीद लिया था । उसमें उन्होंने मुझे तथा मेरे बाल-बच्चोंको मुफ्त ले जानेका आग्रह किया। मैंने धन्यवाद सहित स्वीकार किया और दिसंबर के प्रारंभ में ' कुरलैंड में अपनी धर्म-पत्नी, दो बच्चे और स्वर्गीय बहनोईके इकलौते पुत्रको लेकर दूसरी बार दक्षिण अफ्रीका रवाना हुआ। इस जहाजके साथ ही 'नादरी' नामक एक और जहाज डरबन रवाना हुआ। उसके एजेंट दादा अब्दुल्ला थे। दोनों जहाजोंमें मिलकर कोई आठ सौ यात्री थे । उनमें आधेसे अधिक यात्री ट्रान्सवाल जानेवाले थे ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy