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________________ १७४ आत्म-कथा : भाग २ कोई कमरा मुश्किलसे बिना बदबूवाला होगा। पर एक घरमें तो सोनेके कमरे में मोरी और पाखाना दोनों देखे और यह सारा मैला नलमेंसे नीचे उतरता था। इस कमरेमें खड़ा होना मुश्किल था। अब पाठक ही इस बातका अंदाजा कर लें कि उसमें घरवाले सो कैसे सकते होंगे ? समिति हवेली-वैष्णव मंदिर-- देखने भी गई थी। हवेलीके मुखियाजीसे गांधी-कुटुंबका अच्छा संबंध था। मुखियाजीने हवेली देखने देना तथा जितना हो सके सुधार करना स्वीकार किया। उन्होंने खुद उस हिस्सेको कभी न देखा था; हवेलीकी पत्तलें और जूठन आदि पीछेकी छतसे फेंक दिये जाते । वह हिस्सा कौनों और चीलोंका घर बन गया था। पाखाने तो गंदे थे ही। मुखियाजीने कितना सुधार किया, यह मैं न देख पाया। हवेलीकी गंदगी देखकर दुःख तो बहुत हुआ। जिस हवेलीको हम पवित्र स्थान समझते हैं, वहां तो आरोग्यके नियमोंका काफी पालन होनेकी आशा रखते हैं। स्मृतिकारोंने जो बाह्यान्तर शौचपर बहुत जोर दिया है, यह बात मेरे ध्यानसे बाहर उस समय भी न थी। राजनिष्ठा और शुश्रूषा शुद्ध राजनिष्ठाका अनुभव मैंने जितना अपने अंदर किया है उतना शायद ही दूसरोंमें किया हो। मैं देखता कि इस राजनिष्ठाका मूल है मेरा सत्यके प्रति स्वाभाविक प्रेम । राजनिष्ठाका अथवा किसी दूसरी चीजका ढोंग मुझसे आजतक न हो सका। नेटालमें जिस किसी सभामें मैं जाता, 'गॉड सेव दि किंग' बराबर गाया जाता। मैंने सोचा, मुझे भी गाना चाहिए। यह बात नहीं कि उस समय मुझे ब्रिटिश राज्य-नीतिमें बुराइयां न दिखाई देती थीं। फिर भी आमतौरपर मुझे यह नीति अच्छी मालूम होती थी। उस समय यह मानता था कि ब्रिटिशराज्य तथा राज्य-कत्रिोंकी नीति कुल मिलाकर प्रजा-पोषक है । पर दक्षिण अफ्रिकामें उलटी नीति दिखाई देती; रंग-द्वेष नजर आता। मैं समझता कि यह क्षणिक और स्थानिक है । इस कारण राजनिष्ठामें मैं अंग्रेजोंकी प्रतिस्पर्धा करनेकी चेष्टा करता। बड़े श्रमके साथ अंग्रेजोंके राष्ट्र-गीत 'गॉड़
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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