SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय २५ : हिंदुस्तान २५ हिंदुस्तानमें कलकत्तासे बंबई जाते हुए रास्तेमें प्रयाग पड़ता था। वहां ४५ मिनट गाड़ी खड़ी रहती थी। मैंने सोचा कि इतने समयमें जरा शहर देख आऊं। मुझे दवाफरोशके यहांसे दवा भी लेनी थी। दवाफरोश ऊंघता हुआ बाहर आया। दवा देने में बड़ी देर लगा दी। ज्योंही मैं स्टेशन पर पहुंचा, गाड़ी चलती हुई दिखाई दी। भले स्टेशन मास्टरने गाड़ी एक मिनट रोकी भी; पर फिर मुझे वापस न आता देखकर मेरा सामान उतरवा लिया । मैं केलनरके होटलमें उतरा और यहांसे अपना काम शुरू करनेका निश्चय किया। यहांके (पायोनियर' पत्रकी ख्याति मैंने सुनी थी । भारतकी आकांक्षा ओंका वह विरोधी था, यह मैं जानता था। मुझे याद पड़ता है कि उस समय मि० चेजनी (छोटे) उसके संपादक थे। मैं तो सब पक्षके लोगोंसे मिलकर सहायता प्राप्त करना चाहता था। इसलिए मि० चेजनीको मैंने मिलनेके लिए पत्र लिखा । अपनी ट्रेन छूट जानेका हाल लिखकर सूचित किया कि कल ही मुझे प्रयागसे चला जाना है। उत्तर में उन्होंने तुरंत मिलनेके लिए बुलाया । मैं खुश हुअा। उन्होंने गौरसे मेरी बातें सुनी। 'आप जो कुछ लिखेंगे, मैं उसपर तुरंत टिप्पणी करूंगा,' यह आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा--- " पर मैं आपसे यह नहीं कह सकता कि आपकी सब बातोंको मैं स्वीकार कर सकूँगा। औपनिवेशिक दृष्टिबिंदु भी तो हमें समझना और देखना चाहिए न ?" ___ मैंने उत्तर दिया--"आप इस प्रश्नका अध्ययन करें और अपने पत्र में इसकी चर्चा करते रहें, यही मेरे लिए काफी है । शुद्ध न्यायके अलावा मैं और कुछ नहीं चाहता।” शेष समय प्रयागके भव्य त्रिवेणी-संगमके दर्शन और अपने कामके विचारमें गया । इस आकस्मिक मुलाकातने नेटालमें मुझपर हुए हमलेका बीजारोपण किया ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy