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________________ १६६ आत्म-कथा : भाग २ " " आपको अगर कुछ देखना हो तो अभी मेरे साथ घर चलिए । मैंने कहा ---" इसका क्या मतलब ? कहो भी आाखिर क्या बात है ? ऐसे वक्त मेरे घर आनेकी क्या जरूरत, और देखना भी क्या है ? "" 66 32 'नोगे तो पछताओगे । आपको इससे ज्यादा नहीं कहना चाहता । रसोइया वोला । उसकी दृढ़ताने मुझपर असर किया । अपने मुंशीको साथ लेकर घर गया । रसोइया आगे चला । "1 घर पहुंचते ही वह मुझे दुमंजिलेपर ले गया । जिस कमरेमें वह साथी रहता था, उसकी ओर इशारा करके कहा--' इस कमरेको खोलकर देखो । अब में समझा, मैंने दरवाजा खटखटाया। जवाब क्या मिलता ? मैंने बड़े जोरसे दरवाजा ठोंका | दीवार कांप उठी। दरवाजा खुला । अंदर एक बदचलन औरत थी। मैंने उससे कहा -- "वहन, तुम तो यहांसे इसी दम चल दो । अब भूलकर यहां कदम मत रखना । 11 साथीसे कहा -- 'आजसे आपका मेरा संबंध टूटा । में अबतक खूब धोखे में रहा और बेवकूफ बना । मेरे विश्वासका बदला यही मिलना चाहिए था ? साथी बिगड़ा । मुझे धमकी देने लगा -- "तुम्हारी सब बातें प्रकट कर दूंगा । 33 " 'मेरे पास कोई गुप्त बात है ही नहीं । मैंने जो कुछ किया हो उसे खुशी से प्रकट कर देना; पर तुम्हारा संबंध ग्राजसे खत्म है । 11 साथी अधिक गर्म हुआ । मैंने नीचे खड़े मुंशीसे कहा -- " तुम जानो; पुलिस सुपरिटेंडेंट से मेरा सलाम कहो और कहो कि मेरे एक साथीने मेरे साथ दगा किया है । उसे मैं अपने घरमें रखना नहीं चाहता । फिर भी वह निकलने से इन्कार करता है । मेहरवानी करके मदद भेजिए । 11 " अपराधी बराबर दीन नहीं । मेरे इतना कहते ही वह ठंडा पड़ा। माफी मांगी। ग्राजिजी से कहा--" सुपरिटेंडेंट के यहां आदमी न भेजिए । और तुरंत घर छोड़ देना स्वीकार किया । इस घटनाने ठीक समयपर मुझे सावधान किया । वह साथी मेरे लिए मोह-रूप और अनिष्ट था, यह बात अब जाकर में स्पष्ट रूपसे समझ सका ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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