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आत्मकथा : भाग २
प्रमाण-पत्रों को इस्तेमाल कर लेते हैं । और आपने जो गोरोंके प्रमाण-पत्र पेश किये हैं उनका असर मेरे दिलपर न हुआ । यहां के गोरे लोग भला आपको क्या पहचाने ? आपके साथ उनका परिचय ही कितना
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पर यहां तो मेरे लिए सभी नये हैं । अब्दुल्ला सेठसे भी मेरी पहचान यहीं हुई । " मैं बीच में बोला ।
"हां, पर आप कहते हैं कि वह आपके गांवके हैं । और आपके पिता बांके दीवान थे, अतएव आपके परिवार के लोगोंको तो वह पहचानते ही हैं । यदि उनका हलफिया बयान पेश कर दें तो मुझे कुछ भी उज्र न होगा । मैं वकीलसभाको लिख भेजूंगा कि गांधीका विरोध मुझसे न होगा ।
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मुझे गुस्सा आया, पर मैंने रोका। मुझे लगा -- ' यदि मैंने अब्दुल्ला सेठका ही प्रमाण-पत्र पेश किया होता तो उसकी कोई परवा न करता और गोरोंकी जान-पहचान मांगी जाती। फिर मेरे जन्मके साथ वकालत - संबंधी मेरी योग्यताका क्या संबंध हो सकता है ? यदि मैं दुष्ट या गरीब मां-बापका पुत्र होऊं तो यह बात मेरी लियाकतकी जांचमें मेरे खिलाफ किसलिए कही जाय ?' पर मैंने इन सब विचारोंको रोककर उत्तर दिया-
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'हालांकि मैं यह नहीं मानता कि इन सब बातोंके पूछने का अधिकार anta-सभाको है, फिर भी जैसा आप चाहते हैं, दादा अब्दुल्लाका हलफिया बयान में पेश करा देने को तैयार हूं ।
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अब्दुल्ला सेठका हलफिया बयान लिखा और वह वकील को दिया । उन्होंने तो संतोष प्रकट कर दिया, पर वकील-सभाको संतोष न हुआ । उसने अपना विरोध अदालतमें भी उठाया । अदालतने मि० एस्कंबका जवाब सुने बिना ही सभाका विरोध नामंजूर कर दिया। प्रधान न्यायाधीशने कहा'इस दलीलमें कुछ जान नहीं कि प्रार्थीने असली प्रमाण-पत्र नहीं पेश किया । यदि उसने झूठी सौगंध खाई होगी तो उसपर अदालत में झूठी कसम खानेका मुकदमा चल सकेगा और उसका नाम वकीलोंकी सूची से हटा दिया जायगा । अदालतकी धाराओं में काले-गोरेका भेदभाव नहीं है । हमें मिं० गांधीको वकालत करनेसे रोकने का कोई अधिकार नहीं । उनकी दरख्वास्त मंजूर की जाती है । मि० गांधी, आप आकर शपथ ले सकते हैं।
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