SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ , अध्याय १६ : ' को जाने कलकी ? १४१ एना किंग्सफर्ड के साथ मिलकर 'परफेक्ट वे' (उत्तम मार्ग ) नामक पुस्तक लिखी थी। वह मुझे पढ़नेके लिए भेजी । प्रचलित ईसाई धर्मका उसमें खंडन था । 'बाइबिलका नवीन अर्थ ' नामक पुस्तक भी उन्होंने मुझे भेजी। ये पुस्तकें मझे पसंद आईं। उनसे हिंदू - मतको पुष्टि मिली। टॉलस्टायकी वैकुंट तुम्हारे हृदयमें हैं ' नामक पुस्तकने मुझे मुग्ध कर लिया। उसकी बड़ी गहरी छाप मुझपर पड़ी। इस पुस्तककी स्वतंत्र विचार-शैली, उसकी प्रौढ़ नीति, उसके सत्यके सामने मि० कोट्सकी दी हुई तमाम पुस्तकें शुष्क मालूम हुईं । इस प्रकार मेरा यह अध्ययन मुझे ऐसी दिशामें ले गया जिसे ईसाई मित्र नहीं चाहते थे । एडवर्ड मेटलैंड के साथ मेरा पत्र-व्यवहार काफी समयतक रहा। afa ( रायचंद ) के साथ तो अंत तक रहा। उन्होंने कितनी ही पुस्तकें भेजीं । उन्हें भी पढ़ गया । उनमें 'पंचीकरण', ' मणिरत्नमाला', 'योगवासिष्ठ ' का मुमुक्षु प्रकरण, हरिभद्र सूरिका 'षड्दर्शन- समुच्चय ' इत्यादि थे । इस प्रकार यद्यपि मैं ऐसे रास्ते चल पड़ा, जिसका खयाल ईसाई मित्रोंने न किया था, फिर भी उनके समागमने जो धर्म - जिज्ञासा मुझमें जागृत कर दी थी उसके लिए तो मैं उनका चिरकालीन ऋणी हूं। उनसे मेरा यह संबंध मुझे हमेशा याद रहेगा। ऐसे मीठे और पवित्र संबंध आगे और भी बढ़ते गये, घटे नहीं हैं । १६ 'को जाने कलकी " खबर नह इस जुगमें पलकी मसझ मन ! ' को जाने कलकी?' मुकदमा खतम हो जानेके बाद मेरे प्रिटोरिया में रहने का कोई प्रयोजन न रहा था। सो मैं डरबन गया। वहां जाकर घर ( भारतवर्ष ) लौटनेकी तैयारी की ; पर अब्दुल्ला सेठ भला मुझे श्रादर-सत्कार किये बिना क्यों जाने देने लगे ? उन्होंने सिडनहैममें मेरे लिए खान-पानका एक जलसा किया। सारा दिन उसमें लगनेवाला था । मेरे पास कितने ही अखबार रक्खे हुए थे । उन्हें में देख रहा था । एक
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy