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________________ कुछ पढ़ना होता तो उसे में पहले कर लेता। इसके फलस्वरूप मामलेकी असली बातोंका मुझे इतना ज्ञान हो गया कि खुद मुद्दई-मुद्दालेको भी शायद न हो; क्योंकि मेरे पास तो दोनोंके कागजात थे । मुझे स्वर्गीय मि० पिंकटके शब्द याद आये। उनका समर्थन बादको दक्षिण अफ्रिकाके सुप्रसिद्ध बैरिस्टर स्वर्गीय मि० लैनर्डने एक अवसरपर किया था। 'हकीकत तीन-चौथाई कानून है'--यह मि० पिंकटका वाक्य था । एक मामले में मैं जानता था कि न्याय सर्वथा मेरे मवक्किलके पक्षमें था; परंतु कानून उसके खिलाफ जाता हुआ दिखाई पड़ा। मैं निराश होकर मि० लैनर्डने से सहायता लेने के लिए दौड़ा। उन्हें भी हकीकतोंके आधारपर मामला मजबूत मालूम हुआ । वह बोल उठे, “ गांधी, मैंने एक बात सीखी है। यदि हकीकतोंका ज्ञान हमें पूरा-पूरा हो, कानून अपने-आप हमारे अनुकूल हो जायगा। सो हम इस मामले की हकीकतको देखें ।" यह कहकर उन्होंने सुझाया कि एक बार और हकीकतोंका खूब मनन कर लो और मुझसे मिलो।' उसी हकीकतकी फिर छानबीन करते हुए, उसका मनन करते हुए, मुझे वह दूसरी तरह दिखाई दी और उससे संबंध रखनेवाला दक्षिण अफ्रिकामें हुआ एक पुराना मामला भी हाथ लग गया। मारे खुशीके मैं मि० लेनईके यहां पहुंचा। वह खुश हो उठे और बोले--- "बस, अब हम इस मामलेको जीत लेंगे। बेंचपर कौन-मे जज होंगे, यह जरा ध्यानमें रखना होगा ।” जब दादा अब्दुल्लाके मामलेकी तैयारी कर रहा था तब हकीकतंकी महिमा मैं इस दरजेतक न समझ सका था। हकीकतके मानी हैं सत्य बात; सत्य बातपर प्रारूढ़ रहने से कानून अपने-आप हमारी सहायताके लिए अनुकूल हो जाता है । .. मैंने अंतको देख लिया था कि मेरे मवक्किलका पक्ष बहुत मजबूत है । कानूनको उसकी मददके लिए आना ही पड़ेगा । पर साथ ही मैंने यह भी देखा कि मामला लड़ते-लड़ते दोनों रिश्तेदार, एक ही शहरके रहनेवाले, बरबाद हो जायंगे। मामलेका अंत क्या होगा, यह किसीको खबर न हो सकती थी। अदालतमें तो मामला जहांतक जी चाहे लंबा किया जा सकता है। लंबा करनेसे दो से किसीको लाभ न था। इस कारण दोनों
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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