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________________ आत्म-कथा : भाग २ -... आरेंज फ्री स्टेटमें १८८२ ईस्वी में अथवा उसके पहले एक कानून बनाकर भारतीयोंके तमाम अधिकार छीन लिये गये थे। सिर्फ होटलमें 'वेटर' बनकर रहनेकी आजादी भारतीयोंको रह गई थी। जो भारतीय व्यापारी वहां थे उन्हें नाम-मात्रके लिए मुआवजा देकर वहांसे हटा दिया गया। उन्होंने प्रार्थना-पत्र इत्यादि तो भेजे-भिजाये; पर नक्कारखाने में तूतीकी आवाज कौन सुनता ! ट्रांसवालमें १८८५में सख्त कानून बना। १८८६में उसमें कुछ सुधार हुआ, जिसके फलस्वरूप यह नियम बना कि तमाम हिंदुस्तानी प्रवेश-फीसके तौरपर ३ पौंड दे। जमीनकी मालिकी भी उन्हें उन्हीं जगहोंमें मिल सकती है, जो उनके लिए खास तौरपर बताई जायं। पर वास्तवमें तो किसीको मालिकी मिली न थी; और मताधिकार भी किसीको कुछ न था। ये तो कानन ऐसे थे, जिनका संबंध एशियावासियोंसे था; परंतु जो कानून श्यामवर्णके लोगोंके लिए थे वे भी एशियावासियोंपर लागू होते थे। उसके अनुसार भारतवासी फुटपाथपर अधिकार-पूर्वक न चल सकते थे, रातको नौ बजेके बाद बिना परवाने के बाहर न निकल सकते थे। इस अंतिम कानूनका अमल भारतवासियोंपर कहीं कम होता, कहीं ज्यादा । जो अरब कहलाते थे, उसपर बतौर मेहरबानीके यह कानून लागू न भी किया जाता; पर यह बात थी पुलिसकी मरजीपर अवलंबित । अब मुझे यह देखना था कि इन दोनों कानूनोंका अमल खुद मेरे साथ किस तरह होता है। मि० कोट्सके साथ मैं बहुत बार घूमनेके लिए जाता। घर पहुंचते कभी दस भी बज जाते । ऐसी अवस्थामें यह आशंका रहा करती कि कहीं मुझे पुलिस पकड़ न ले। पर मेरी अपेक्षा यह भय कोट्सको अधिक था; क्योंकि अपने हबशियोंको तो परवाने वही देते थे। पर मुझे कैसे दे सकते थे ? मालिकको परवाना देनेका अधिकार सिर्फ नौकरके ही लिए था। यदि मैं लेना बाहूं और कोट्स देनेको तैयार हों तो भी वह नहीं दे सकते थे; क्योंकि ऐसा करना दगा समझा जाता । इस कारण मुझे कोट्स अथवा उनके कोई मित्र वहांके सरकारी वकील डा० क्राउजेके पास ले गये । हम दोनों एक ही 'इन' के बैरिस्टर निकले। यह बात कि मुझे नौ बजेके बाद रातको परवाना लेनेकी जरूरत है, उन्हें बड़ी नागवार मालूम हुई। उन्होंने मेरे साथ समवेदना प्रदर्शित की। मुझे परवाना
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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