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________________ अध्याय १० : प्रिटोरियामै पहला दिन करता हूं।" ___ कमरा मिला। अंदर गया। एकांत मिलते ही भोजनकी राह देखता हुआ विचारोंमें लीन हो गया। इस होटलमें अधिक मुसाफिर नहीं रहते थे। थोड़ी ही देर में वेटरको भोजन लाते हुए देखनेके बजाय मि० जान्स्टनको देखा। उन्होंने कहा--" मैंने आपसे यह कहा तो कि खाना यहीं भिजवा दूंगा, पर बादको मुझे शर्म मालूम हुई । इसलिए मैंने अपने ग्राहकोंसे अापके संबंधमें बातचीत की और उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि भोजनालयमें आकर आपके भोजन करने में हमें कोई ऐतराज नहीं है। इसलिए आप चाहें तो भोजनशालामें आकर भोजन करें और जबतक चाहें यहां रहें ।" । मैंने दुबारा उनका उपकार माना, भोजनशालामें खाने गया और आरामसे भोजन किया । दूसरे दिन सुबह वकीलके यहां गया। उनका नाम था ए० डबल्यू० बेकर। उनसे मिला। अब्दुल्ला सेठने उनका थोड़ा-बहुत परिचय दे रक्खा था, इसलिए उनकी पहली मुलाकातसे मुझे कुछ आश्चर्य न हुआ। वह मुझसे बड़ी अच्छी तरह मिले और मुझसे अपना हाल-चाल पूछा, जो मैंने उन्हें बता दिया। उन्होंने कहा- “बैरिस्टरकी हैसियतसे तो आपका यहां कुछ भी उपयोग न हो सकेगा। हमने अच्छे-से-अच्छे बैरिस्टर इस मामले में कर लिये हैं। मुकदमा मुद्दततक चलेगा और उसमें कई गुत्थियां हैं। इसलिए आपसे तो मैं इतना काम ले सकूँगा कि आवश्यक वाकफियत वगैरा मुझे मिल जाय । हां, हमारे मवक्किलसे पत्रव्यवहार करना अब आसान हो जायगा। और जो बातें मुझे जाननी होंगी वे आपके मार्फत उनसे मंगाई जा सकेंगी, यह लाभ जरूर है। आपके लिए मकान तो मैंने अबतक नहीं खोजा है। सोचा था कि आपसे मिल लेनेके बाद ही खोजना ठीक होगा। यहां रंग-भेद जबरदस्त है। इसलिए घर मिलना आसान भी नहीं है; परंतु एक बाईको मैं जानता हूं। वह गरीब है। भटियारेकी औरत है। मैं समझता हूं, वह आपको अपने रहां रहने देगी। उसे भी कुछ मिल जायगा । चलो वहीं चलें।" - यह कहकर यह मुझे वहां ले गये । मि0 बेकरने पहले बाई के साथ अकेले में बातचीत की। उसने मुझे अपने यहां टिकाना स्वीकार किया। ३५ शिलिंग
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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