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________________ अध्याय: और कष्ट .११९ लिख दी और मैंने यह भी आश्वासन चाहा कि कल मुझे दूसरे यात्रियोंके साथ अंदर विठाया जाय। एजेंटने मुझे संदेशा भेजा-'स्टैंडरटनसे बड़ी घोडागाड़ी जाती है, और हांकनेवाले आदिकी बदली होती है। जिस शख्सकी शिकायत आपने की है, वह कल उसपर न रहेगा। आपको दूसरे यात्रियों के साथ ही जगह मिलेगी।' इस बातसे मुझे कुछ राहत मिली। उस गोरेपर दावा-फर्याद करनेकी तो मेरी इच्छा ही न थी, इसलिए वह पिटाईका प्रकरण यहीं खतम हो गया। सुबह ईसा सेउके आदमी मुझे घोडागाड़ीपर ले गये । अच्छी जगह मिली। विना किसी दिक्कतके रातको जोहान्सबर्ग पहुंचा । स्टैंडरटन छोटा-सा गांव था। जोहान्सबर्ग भारी शहर । वहां भी अब्दुल्ला सेठने तार तो दे दिया था। मुझे मुहम्मद कासिम कमरुद्दीनकी दुकानका पता-ठिकाना लिख दिया था। उनका आदमी घोड़ागाड़ीके ठहरनेकी जगह तो आया था; पर न मैंने उसे देखा, न वही मुझे पहचान सका। मैंने होटल में जानेका इरादा किया। दो-चार होटलोंके नाम-पते पूछ लिये थे। गाडीको ग्रैंड नेशनल होटल में ले चलने के लिए कहा । वहां पहुंचते हो मैनेजर के पास गया। जगह मांगी। मैनेजरने मुझे नीचेसे ऊपरतक देखा । फिर शिष्टाचार और सौजन्यके साथ कहा--"मुने अफसोज है, तमाम कमरे भरे हुए हैं।" और मुझे बिदा किया। तब मैंने गाड़ीवालेसे कहा- “मुहम्मद कासिम कमरुद्दीनकी दुकानपर ले चलो।" वहां तो अब्दुलगनी सेठ मेरी राह ही देख रहे थे। उन्होंन मेरा स्वागत किया। मैंने होटलमें बीती कह सुनाई । वह एकबारगी हंस पड़े। "भला होटलमें वह हमें ठहरने देंगे।" मैंने पूछा--" क्यों?" " यह तो आप तब जानेंगे, जब कुछ दिन यहां रह लेंगे। इस देशमें तो हम ही रह सकते हैं। क्योंकि हमें रुपया पैदा करना है, इसलिए बहुतेरे अपमान सहन करते हैं, और पड़े हुए हैं।" यह कहकर उन्होंने ट्रांसवालमें होनेवाले कष्टों और अन्यायोंका इतिहास कह सुनाया। इन अब्दुलगनी सेठका परिचय हमें आगे चलकर अधिक करना पड़ेगा। उन्होंने कहा--" यह मुल्क आपके जैसे लोगोंके लिए नहीं है। देखिए न, आपको कल प्रिटोनिया जाना है। उसमें तो आपको तीसरे ही दरजेमें जगह मिलेगी।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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