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अध्याय : और कष्
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और कष्ट
चार्ल्सटाउन ट्रेन सुबह पहुंचती है । चार्ल्सटाउनसे जोहान्सबर्गतक पहुंचने के लिए उस समय ट्रेन न थी । घोड़ागाड़ी थी और बीच में एक रात स्टैंडरटनमें रहना पड़ता था । मेरे पास घोड़ागाड़ीका टिकट था। मेरे एक दिन पिछड़ जानेसे यह टिकट रद्द न होता था । फिर अब्दुल्ला सेठने चार्ल्सटाउनके घोड़ागाड़ीवालेको तार भी दे दिया था । पर उसे तो बहाना बनाना था । इसलिए मुझे एक अनजान आदमी समझकर उसने कहा--'तुम्हारा टिकट रद्द हो गया है । ' मैंने उचित उत्तर दिया। यह कहनेका कि टिकट रद्द हो गया है, कारण तो और ही था । मुसाफिर सब घोड़ागाड़ी के अंदर बैठते हैं । पर मैं समझा जाता था 'कुली'; और अनजान मालूम होता था, इसलिए घोड़ागाड़ीवालेकी यह नीयत थी कि मुझे गोरे मुसाफिरोंके साथ न बैठाना पड़े तो अच्छा । घोड़ागाड़ी में बाहरकी तरफ, अर्थात् हांकनेवाले के पास, दायें-बायें दो बैठकें थीं। उनमें से एक बैठक पर घोड़ागाड़ी कंपनीका एक अफसर गोरा बैठता । वह अंदर बैठा और मुझे हांकनेवालेके पास बैठाया । मैं समझ गया कि यह बिलकुल अन्याय है, अपमान है । परंतु मैंने इसे पी जाना उचित समझा। मैं जबरदस्ती तो अंदर बैठ नहीं सकता था । यदि झगड़ा छेड़ लूं तो घोड़ागाड़ी चल दे और फिर मुझे एक दिन देर हो, और दूसरे दिनका हाल परमात्मा ही जाने । इसलिए मैंने समझदारी से काम लिया और बाहर ही बैठ गया । मनमें तो बड़ा खीझ रहा था ।
कोई तीन बजे घोड़ागाड़ी पारडीकोप पहुंची । उस वक्त गोरे अफसरको मेरी जगह बैठने की इच्छा हुई । उसे सिगरेट पीना था । शायद खुली हवा भी खानी हो । सो उसने एक मैला-सा बोरा हांकनेवालेके पाससे लिया और पैर रखने के तख्तेपर बिछाकर मुझसे कहा--" सामी, तू यहां बैठ, मैं हांकने वाले पास बैठूंगा ।" इस अपमानको सहन करना मेरे सामर्थ्य के बाहर था, इसलिए मैंने डरते-डरते उससे कहा--" तुमने मुझे जो यहां बैठाया, सो इस अपमानको तो मैंने सहन कर लिया । मेरी जगह तो थी अंदर; पर तुमने अंदर बैठकर मुझे