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________________ "तो मैं अपने वकीलको लिचूंगा। वह आपके ठहरनेका इंतजाम कर गे। प्रिटोरियाम मेरे मेमन मित्र हैं। उन्हें भी मैं लिखूगा तो, पर आपका नके यहां ठहरना उचित न होगा। वहां अपने प्रतिपक्षीकी पहुंच बहुत है। पापको में जो खानगी चिट्ठियां लिखंगा वह यदि उनमेंसे कोई पढ़ ले तो अपना तारा मामला बिगड़ सकता है। उनके साथ जितना कम संबंध हो उतना ही प्रच्छा ।" मैंने कहा- "आपके वकील जहां ठहरावेंगे वहीं ठहरूंगा। अथवा मैं कोई दूसरा मकान ले लूंगा। आप बेफिक्र रहिए, आपकी एक भी खानगी बात रहर न जायगी। पर में मिलता-जुलता सबसे रहूंगा। मैं तो दूसरे पक्षवालोंसे मो मित्रता करना चाहता हूं। यदि हो सकेगा तो मैं मामलेको अापसमें भी निपटाने की कोशिश करूंगा, क्योंकि आखिर तैयद सेठ हैं तो आपके ही रिश्तेदार न ।" प्रतिवादी स्वर्गीय सेठ तैयब हाजी खानमुहम्मद अब्दुल्ला सेठके नजदीकी रिश्तेदार थे। • मैंने देखा मेरी इस बातसे अब्दुल्ला सेठ कुछ चौंके ; पर अब मुझे डरबन पहुंचे छ:-सात दिन हो गये थे और हम एक-दूसरेको जानने, समझने भी लगे थे। अब मै ‘सफेद हाथी' प्रायः नहीं रह गया था। वह बोले "हां... आ ... श्रा, यदि समझौता हो जाय तो उससे बढ़कर उम्दा बात क्या हो सकती? पर हम तो आपसमें रिश्तेदार हैं, इसलिए एक-दूसरेको अच्छी तरह जानते हैं। तैयब सेठ प्रासानीसे मान लेनेवाले शख्स नहीं हैं। म यदि भोले-भाले बनकर रहें तो वह हमारे पेटकी बात निकालकर पीछेसे सा मारेंगे! ऐसी हालतमें आप जो कुछ करें बहुत सोच-समझकर होशियारीसे करें।" "आप बिलकुल चिंता न करें। मुकदमेकी बात तो तैयव पेठ क्या किसीसे भी क्यों करने लमा ? पर यदि दोनों आपसमें समझ लें तो सेठ । घर न भरने पड़ेंगे।" सातवें या आठवें दिन मैं डरबनसे रवाना हुआ। मेरे लिए पहले आने टिकट लिया गया। सोनेकी जगहके लिए वहां ५ शिलिंगला एक अलहदा ... लेना पड़ता था। अब्दुल्ला सेठने प्राग्रहके साथ कहा कि सोनेका टिकट
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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