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________________ १०६ आत्म-कथा : भाग २ पास एक मछवा था । उसे १० ) देकर एक मित्रने किराये किया। मछवे नं मुझे नावमेंसे उठा लिया। जहाजकी सीढ़ी ऊपर चढ़ चुकी थी । रस्सीके बन मैं ऊपर खींचा गया और जहाज चलने लगा । बेचारे दूसरे यात्री रह गये । कप्तानकी उस चेतावनीका मतलब व मैं समझा । लामूसे मोंबासा और वहांसे जंजीबार पहुंचे । जंजीबारमें बहुत ठहरना था -- या १० दिन । यहांसे नये जहाजमें बैठना था । कप्तान के प्रेमकी सीमा न थी । इस प्रेमने मेरे लिए विपरीत रूप धारण किया। उसने मुझे अपने साथ सैर करने के लिए बुलाया । उसका एक अंग्रेज मित्र भी साथ था । हम तीनों कप्तानके मछवेमें उतरे। इस सैरका मर्म में बिलकुल न जानता था । कप्तानको क्या खबर थी कि ऐसी बातोंमें में बिलकुल अनजान होऊगा । हम तो हवशी औरतोंके मुहल्लोंमें जा पहुंचे। एक दलाल हमें वहां ले गया। तीनों एक-एक कमरे में दाखिल हुए। पर मैं तो शर्मका मारा कमरे में घुसा बैठा ही रहा। उस बेचारी बाईके मनमें क्या-क्या विचार प्राये होंगे, यह तो वही जानती होगी। थोड़ी देरमें कप्तानने श्राबाज लगाई । मैं तो जैसा अंदर घुसा था, वैसा ही वापस बाहर आ गया । यह देखकर कप्तान मेरा भोलापन समझ गया। शुरू में तो मुझे बड़ी शर्म मालूम हुई; परंतु इस काम को तो में किसी तरह पसंद नहीं कर सकता था, इससे शर्म चली गई और मैंने ईश्वरका उपकार माना कि इस बहनको देखकर मेरे मनमें किसी प्रकारका विकारतक उत्पन्न न हुआ । मुझे अपनी इस कमजोरीपर बड़ी ग्लानि हुई कि मैं कमरेमें प्रवेश करनेसे इन्कार 'करनेका साहंस क्यों न कर सका । • मेरे जीवनमें यह इस प्रकार की तीसरी परीक्षा थी। कितने ही नवयुवक शुरूआत में निर्दोष होते हुए भी झूठी शर्म से बुराईमें लिप्त हो जाते होंगे। मेरा बचाव मेरे पुरुषार्थके बदौलत नहीं हुआ था । यदि मैंने कमरेमें जाने से साफ इन्कार कर दिया होता तो पुरुषार्थ समझा जा सकता था । सो मेरे इस बचाव के लिए तो एकमात्र ईश्वरका ही उपकार मानना चाहिए । इस घटना से ईश्वरपर मेरी आस्था दृढ़ हुई और झूठी शर्म छोड़ने का साहस भी कुछ प्राया । जंजीबार में एक सप्ताह रहना था । इसलिए एक मकान किराये का लेकर मैं शहरमें रहा । खूब घूम-फिरकर शहरको देखा । जंजीबारकी हरियाली
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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