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________________ ६२ आत्म-कथा : भाग २ मुक्तानंदका यह वचन उनकी जबानपर तो रहता ही था, पर उनके हृदयमें भी अंकित हो रहा था । खुद हजारोंका व्यापार करते, हीरेमोतीकी परख करते, व्यापारकी गुत्थियां सुलझाते, पर वे बातें उनका विषय न थीं। उनका विचार - उनका पुरुषार्थ तो -- प्रात्म-साक्षात्कार -- हरिदर्शन था । दूकानपर और कोई चीज हो या न हो, एक-न-एक धर्म-पुस्तक और डायरी जरूर रहा करती । व्यापारकी बात जहां खतम हुई कि धर्म-पुस्तक खुलती अथवा रोजनामचेपर कलम चलने लगती । उनके लेखों का संग्रह गुजराती में प्रकाशित हुआ है, उसका अधिकांश इस रोजनामचेके ही आधारपर लिखा गया है। जो मनुष्य लाखोंके सौदेकी बात करके तुरंत श्रात्मज्ञानकी गूढ़ बातें लिखने बैठ जाता है वह व्यापारीकी श्रेणीका नहीं, बल्कि शुद्ध ज्ञानीकी कोटिका है। उनके संबंध में यह अनुभव मुझे एक बार नहीं अनेक बार हुआ है । मैंने उन्हें कभी गाफिल नहीं पाया । मेरे साथ उनका कुछ स्वार्थ न था । मैं उनके बहुत निकट समागममें आया हूं । मैं उस वक्त एक ठलुआ बैरिस्टर था। पर जब मैं उनकी दुकानपर पहुंच जाता तो वह धर्म-वार्ताके सिवा दूसरी कोई बात न करते । इस समयतक में अपने जीवनकी दिशा न देख पाया था; यह भी नहीं कह सकते कि धर्म-बातों में मेरा मन लगता था । फिर भी मैं कह सकता हूं कि रायचंदभाईकी धर्म-वार्ता में चाव से सुनता था । उसके बाद में कितने ही धर्माचायोंके संपर्क में आया हूं, प्रत्येक धर्म के प्राचार्यों से मिलनेका मैंने प्रयत्न भी किया है; पर जो छाप मेरे दिलपर रायचंदभाईकी पड़ी, वह किसी की न पड़ सकी । उनकी कितनी ही बातें मेरे ठेठ अंतस्तलतक पहुंच जातीं । उनकी बुद्धिको मैं प्रदरकी दृष्टिसे देखता था । उनकी प्रामाणिकतापर भी मेरा उतना ही आदर भाव था । और इसमें में जानता था कि वह जान-बूझकर उल्टे रास्ते नहीं ले जायंगे एवं मुझे वही बात कहेंगे, जिसे वह अपने जीमें ठीक समझते होंगे । इस कारण में अपनी प्राध्यात्मिक कठिनाइयोंमें उनकी सहायता लेता । रायचंदभाईके प्रति इतना आदर भाव रखते हुए भी मैं उन्हें धर्मगुरुका स्थान अपने हृदय में न दे सका । धर्म-गुरुकी तो खोज मेरी अबतक चल रही है । हिंदू धर्म में गुरुपदको जो महत्त्व दिया गया है उसे 'मानता हूं। 'गुरु बिन होत न ज्ञान' यह वचन बहुतांश सच है । अक्षर ज्ञान देनेवाला शिक्षक
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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