SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 782
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शांकर-पर्शनम् ७४५ रहित है, क्रिया-रहित है, शान्त (परिणामरहित ) है' [ रागादि ] दोषों में शून्य है तथा अञ्जन (धर्म-अधर्म आदि ) से भी भिन्न है।' (श्वे० ६.१९)। (२२. शाक्त-सम्प्रदाय में माया-शक्ति) केचन शाक्ताः शक्ति मायाशब्दार्थभूतां जगत्कारणत्वेनाङ्गीकृतां सत्यामभ्युपेत्य मातुलिङ्गगदाखेटविधारिणी महालक्ष्मीस्तस्याः प्रथमावतार इति वर्णयन्ति । सा च कालरात्रिः सरस्वतीति द्वे शक्ती उत्पाद्य ब्रह्माणं पुरुषं श्रियं च स्त्रियमुत्पादयामास । स्वयं मिथुनं जनयित्वा स्वसुते अप्याह-अहमिव युवामपि मिथुनमुत्पादयतमिति । ततः कालरात्रिर्महादेवं पुरुषं स्वरां स्त्रियं च जनयामास । सरस्वती च विष्णुं पुरुषं गौरी च स्त्रियमुदपादयत् । कुछ लोग अर्थात् शक्ति-सम्प्रदायवाले 'माया' शब्द का अर्थ शक्ति ( Eternal and mysterious power ) समझते हैं जिसे जगत् के कारण के रूप में स्वीकृत किया गया है तथा जो सत्स्वरूपा है । उसे मान करके ये लोग मातुलिङ्ग ( एक फल ), गदा और चर्म धारण करनेवाली महालक्ष्मी का उसके प्रथम अवतार के रूप में वर्णन करते हैं। उस ( महालक्ष्मी ) ने कालरात्रि और सरस्वती नामक दो शक्तियों को उत्पन्न करके पुरुष के रूप में ( as for man ) ब्रह्मा को और स्त्री के रूप में श्री ( लक्ष्मी ) को उत्पन्न किया। [ महालक्ष्मी ने ] स्वयम् एक जोड़े ( ब्रह्मा+श्री ) को उत्पन्न करके अपनी पुत्रियों से कहा-मेरे ही समान तुम दोनों भी जोड़ा उत्पन्न करती जाओ। तब कालरात्रि ने एक पुरुष अर्थात् महादेव को और एक स्त्री अर्थात् स्वरा को उत्पन्न किया। उधर सरस्वती ने भी एक पुरुष-विष्णु को और एक स्त्री-गौरी को उत्पन्न किया । ततश्चादिविवाहमकरोदकारयच्च । एवं ब्रह्मणे स्वरां, विष्णवे श्रियं, शिवाय गौरी दत्त्वा शक्तियुक्तानां तेषां सृष्टिस्थितिसंहाराख्यानि कर्माणि प्रत्यपादयदिति। तदेतन्मतं श्रुत्याविमूलप्रमाणविधुरतया स्वोत्प्रेक्षामात्रपरिकल्पितमिति स्वरूपव्याक्रियव निराक्रियेत्युपेक्षणीयम् । ततश्चानिर्वचनीयानाद्यविद्यालसितः प्रत्यगात्मनि प्रतीयमानः प्रमातृत्वाविप्रपञ्च इत्यलमतिप्रसङ्गन।। तब पहली ( महालक्ष्मी ) ने विवाह किया और कराया भी। तदनुसार ब्रह्मा को स्वरा, विष्ण को श्री तथा शिव को गौरी समर्पित करके उन्हें शक्तियुक्त कर दिया तथा उन्हें क्रमशः सृष्टि, स्थिति और संहार नामक कर्म बतला दिया। [अद्वैत वेदान्ती कहते हैं कि ] यह मत तो श्रुति आदि प्रमाणों पर आधारित नहीं है। अपनी उत्प्रेक्षा से ही कल्पित हुआ है अतः इसका सबसे बड़ा खण्डन यही है कि यह अपने १. शान्त = बुभुक्षा, पिपासा, शोक, मोह, जरा, मृत्यु-इन छह उर्मियों से रहित ।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy