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शांकर-दर्शन
७४१ स्वनिवति । विषयगतामज्ञानतां निराकर्तु स्वदेशगतेति । मिथ्याज्ञानमपोहितुं वस्त्वन्तरेति। धारावाहिकविज्ञाने व्यभिचारं व्यासेधुमप्रकाशितेति।
(४) उत्तर क्षण के ज्ञान से पूर्वक्षण के ज्ञान की निवृत्ति होती है इस [प्रकार के स्वनिवर्त्य ज्ञान ] की व्यावृत्ति के लिए स्वविषयावरण शब्द लगाया है [ जिसमें अविद्या का लक्षण प्रकट होता है कि वह अपने विषय घट का आवरण स्वयं करती है-उसमें पूर्वापर ज्ञान का प्रश्न नहीं है। ]
(५) [ उक्त प्रकार के प्रमाणज्ञान में प्रागभाव है ही---] इसीलिए प्रागभाव को दूर करने के लिए स्वप्रागभावव्यतिरिक्त शब्द का प्रयोग हुआ है।
[इस प्रकार अभी तक अन्तिम विशेषण से प्रथम विशेषण की ओर जाते हुए उन सबों की सार्थकता दिखा रहे थे । अब प्रथम विशेषण से आरम्भ करके अन्तिम विशेषण की ओर आ रहे हैं । इस प्रकार विशेषणों की सार्थकता पर भली-भांति विचार करके ही अनुमान के द्वारा अविद्या की सिद्धि की जा रही है । ]
(१) यदि केवल इतना कहते कि 'प्रमाणज्ञान अपने प्रागभाव से भिन्न वस्त्वन्तर के बाद उत्पन्न होता है तो वह प्रमाणज्ञान अपने विषय ( घट-पटादि ) से ही पृथक् पदार्थ हो जाता । इस प्रसङ्ग को रोकने के लिए विषयावरण शब्द का प्रयोग किया गया है [जिससे प्रमाणज्ञान और विषयों का ऐक्य सिद्ध होता है। विषय का आवरण है अर्थात् स्वयं विषयों के रूप में है।]
(२) [ अब प्रश्न है कि अन्धकार भी तो विषय का आवरण करता है तो क्या इसे ही प्रमाणज्ञान कहेंगे ? नहीं, ] ऐसे ही स्वविषयावरण करनेवाले अन्धकार का निषेध करने के लिए स्वनिवर्त्य शब्द लगाया है। [ अन्धकार स्वनिवर्त्य नहीं है, प्रमाणज्ञान है।] अन्धकार की निवृत्ति प्रकाश से होती है, प्रमाणज्ञान से नहीं।] . (३) विषय-निष्ठ अज्ञातता को दूर करने के लिए स्वदेशगत विशेषण लगा है। [ घटादि विषयों में अज्ञातता है, उसका निराकरण भी प्रमाणज्ञान से ही होता है परन्तु वह अज्ञातता प्रमाणज्ञान में अवस्थित तो नहीं है । ]
( ४ ) मिथ्याज्ञान का निराकरण करने के लिए वस्त्वन्तर शब्द का प्रयोग किया गया है [ सीपी में जो चांदी के रूप में ज्ञान होता है वह ( सोपो के ज्ञानरूपी ) प्रमाणज्ञान के प्रागभाव से भिन्न होता है; इस प्रमाणज्ञान (शुक्तित्वप्रकारक) से अपने विषय (सीपी ) का आवरण भी निवृत्त हो जाता है तथा यह ज्ञान आत्मनिष्ठ (सीपी के ज्ञान के आश्रय आत्मा में स्थित ) भी है, फिर भी वह प्रमाणज्ञान वस्त्वन्तर नहीं है क्योंकि ज्ञान है-और यहां ज्ञान को वस्त्वन्तर मानते हैं । ]