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शांकर-वर्शनम्
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इसलिए जिस प्रकार अविद्या व्यामोह उत्पन्न करती है, माया भी व्यामोह उत्पन्न करती ही है। दोनों में इस दृष्टि से कोई भेद नहीं । तो, व्यामोह के निवारण के प्रयोजक अर्थात् कारण कौन-से हैं ? ]
[ व्यामोह के अभाव के ] प्रयोजक दो हैं - [ माया या अविद्या का द्रष्टा या प्रयोक्ता जो भी हो ] वह बाध का निश्चय कर सके तथा मन्त्र आदि का प्रतीकार ( Reversal ) जानता हो । यदि ऐसा नहीं हुआ तो अन्धे या लंगड़े की तरह माया के निर्माता को भी व्यामोह हो जायगा । [ अन्धा या लंगड़ा अपने अङ्ग से रहित होने के कारण अपना काम नहीं कर सकता - अन्धा देख नहीं सकता, लंगड़ा चल नहीं सकता | वैसे ही मायाकार भी बाध-निश्चय करने में असमर्थ होने से तथा मन्त्र - प्रतीकार से अनभिज्ञ होने से अपना कार्य - व्यामोह - निवारण - नहीं कर सकता । जैसे द्रष्टा मोहित होता है वैसे ही कर्ता भी मोहित हो जायगा । हां, उन दोनों में इतना अन्तर अवश्य है कि द्रष्टा को ( माया का प्रपच देखकर मोहित होनेवाले को ) व्यामोह - नाश का अवसर कभी-कभी मिलता है, कर्ता को प्रायः मिला करता है। रामावतार में व्यामोह का कारण था, प्रतिकार का ज्ञान न होना- किसी प्रकार सिद्ध कर लें । माया-प्रयोक्ता या इन्द्रजाल दिखानेवाला ( Magician ) प्रतीकार भी जानता है अतः मोहित नहीं होता । ब्रह्म भी भी माया का रचयिता है— प्रतीकार-ज्ञान होने से स्वयं प्रभावित नहीं होता । फल यह हुआ कि माया और अविद्या दोनों में व्यामोह होता है । प्रतीकार जाननेवाले न तो अविद्या से मोहित होते हैं, न माया से । अतः व्यामोह के अविद्या में भेद नहीं है, साम्य ही है ।
दृष्टिकोण से माया और
न चेच्छानुविधानाननुविधानाभ्यां तयोर्भेद इति भणितव्यम् । मायास्थले मणिमन्त्रौषधादिप्रयोगवदविद्यास्थलेऽपि द्विचन्द्रकेशोण्डकादिविभ्रमनिमित्तागुल्यवष्टम्भादावपि स्वातन्त्र्योपलम्भात् । अत एव तत्र तत्र श्रुतिस्मृतिर्भाव्यादिषु मायाविद्ययोरभेदेन व्यवहारः सङ्गच्छले । क्वचिद्विक्षेपप्राधान्येनावरणप्राधान्येन च मायाविद्ययोर्भेदे तद्व्यवहारो न
विरुध्यते । तदुक्तम्
५१. माया
विक्षिपवज्ञानमीशेच्छावशर्वात वा ।
अविद्याच्छादयत्तस्वं स्वातन्त्र्यानुविधायि वा ॥ इति । आप ( पूर्वपक्षी ) ऐसा भी नहीं कह सकते कि माया और अविद्या में भेद' इसलिए १. श्रुति में जैसे - भूयश्चान्ते विश्वमायानिवृत्तिः [ सम्यक् ज्ञान से माया अर्थात् अविद्या की निवृत्ति ) । स्मृति में, जैसे-
सत्यविद्यां विततां हृदि यस्मिन्निवेशिते ।
योगो मायाममेयाय तस्मै विद्यात्मने नमः ॥ भाष्य में - अविद्या माया अविद्यात्मिका मायाशक्तिः, इत्यादि ।