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________________ पातञ्जल- दर्शनम् ५८९ से केवल सत्ता का ही बचा रह जाना सास्मित समाधि है । [ इस समाधि में ईश्वरस्वरूप तथा जीवात्मा दोनों को जड़ से पृथक् करके देखते हैं । ' अहमस्मि' केवल यही आकार बचा रहता है । पहले जीवात्मा के विषय की अस्मिता होती है । उसके बाद उससे भी सूक्ष्म अस्मिता परमात्मा के विषय में होती है । यही चित्त की अन्तिम भूमि है । इसके बाद कोई ज्ञेय विषय रहता ही नहीं । ] पतञ्जलि ने इसे कहा है- 'वितर्क, विचार, आनन्द और अस्मिता नामक स्वप्नों के सम्बन्ध से [ जो चित्त की वृत्तियों का निरोध होता है वह ] सम्प्रज्ञात समाधि होती है' ( यो० सू० १1१७ ) । विशेष - माधवाचार्य ने योगसूत्र १।१७ की भोजवृत्ति से उपर्युक्त पंक्तियां ली हैं । चित्त की उपर्युक्त चार भूमियों ( Stages ) को क्रमशः मधुमती, मधुप्रतीका, विशोका तथा संस्कारशेषा कहते हैं । अब असम्प्रज्ञात समाधि का निरूपण करते हैं । सर्ववृत्तिविरोधे त्वसम्प्रज्ञातः समाधिः । ननु सर्ववृत्तिनिरोधो योग इत्युक्ते सम्प्रज्ञाते व्याप्तिर्न स्यात् । तत्र सत्त्वप्रधानायाः सत्त्वपुरुषान्यताख्यातिलक्षणाया वृत्तेरनिरोधादिति चेत् — तदेतद्वार्तम् । क्लेशकर्मविपाकाशयपरिपन्थिचित्तवृत्तिनिरोधो योग इत्यङ्गीकारात् । किन्तु जब सभी वृत्तियों का निरोध हो जाता है तब समाधि असम्प्रज्ञात कहलाती है । यहाँ पर एक प्रश्न हो सकता है कि जब आप 'सभी प्रवृत्तियों का निरोध होना योग है' ऐसा कहते हैं तब तो सम्प्रज्ञात समाधि ( जिसमें कुछ ही वृत्तियों का निरोध होता है, अहंकार रह ही जाता है) इस लक्षण के अन्दर नहीं आ सकेगी । उस ( सम्प्रज्ञात समाधि ) में सत्त्व और पुरुष की पृथक् प्रतीति का निर्देश करनेवाली सत्त्वप्रधान [ प्रमाण ] वृत्ति का तो निरोध नहीं ही हो पाता । किन्तु यह प्रश्न बिल्कुल निस्सार है, क्योंकि क्लेश, कर्म, विपाक और आशय के विरोधी के रूप में चित्त वृत्ति निरोध को हम योग मानते हैं । [ निरोध का अर्थ सभी वृत्तियों का निरोध ही नहीं है प्रत्युत जिससे क्लेशादि का विनाश हो । सम्प्रज्ञात समाधि में भी क्लेशादि का निरोध होता है अतः यहां भी चित्तवृत्ति-निरोध तो हुआ ही । ] ( ११. पाँच प्रकार के क्लेश- अविद्या पर आपत्ति ) क्लेशाः पुनः पश्वधा प्रसिद्धाः -- अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशाः ( पात० यो० सू० २।३ ) इति । नन्वविद्येत्यत्र किमाश्रीयते ? पूर्वपदार्थप्राधान्यममक्षिकं वर्तत इतिवत् । उत्तरपदार्थप्राधान्यं वा राजपुरुष इतिवत् । अन्यपदार्थप्राधान्यं वा अमक्षिको देश इतिवत् । क्लेश पाँच प्रकार के प्रसिद्ध हैं - 'अविद्या ( एक वस्तु को दूसरे रूप में समझना ), अस्मिता ( चित्त और पुरुष को एक समझना ), राग ( विषयों की अभिलाषा ), द्वेष
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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