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________________ पातञ्जल- दर्शनम् प्रत्याहार के द्वारा इसमें फूल लगते हैं और अन्त में धारणा आदि अन्तरंग साधनों के द्वारा फलवान होता है । इन तीन साधनों का वर्णन भी करें । - ( ६ ) धारणा - नाभिचक्र, हृदय, नासिका आदि स्थानों में चित्त को एकाग्र ( Concentrate ) कर लेना धारणा है । देश कोई भी हो - मूर्ति हो या अपना हो शरीर, किन्तु चित्त की एकाग्रता होनी चाहिए । (७) ध्यान-धारणा में किसी देश में चित्त की वृत्ति ( प्रत्यय ) एक स्थान पर स्थिर की जाती है – अब वह वृत्ति इस प्रकार से समान प्रवाह के द्वारा लगातार उगती रहे कि दूसरी कोई वृत्ति बीच में न आये, तब उसे ध्यान कहते हैं ( तत्र प्रत्ययेकतानता ध्यानम् ३।२ ) । (८) समाधि - यह ध्यान जब केवल ध्येय वस्तु के आकार में हो जाय, न ध्यान रहे न ध्याता, तब उसे समाधि कहते हैं । ध्यानावस्था में ध्यान-क्रिया, ध्यान करनेवाले तथा ध्येय वस्तु की भी प्रतीति होती है । किन्तु अभ्यास बढ़ाने पर तीनों जब एकाकार होकर ध्येय के स्वरूप में ही प्रतीत होने लगें तब उस अवस्था का नाम समाधि हो जाता है। ५५७ इन तीनों अन्तरंग साधनों का सम्मिलित नाम संयम है जिसके दो फल हैं - मुख्य फल योग ही है, किन्तु गौणफल हैं नाना प्रकार की विभूतियां जैसे -- भूत-भविष्यत् की बातों का ज्ञान, पशु-पक्षी आदि की बोली समझने की शक्ति, दूसरे जन्म की बातों का ज्ञान, दूसरे के मन की बातों को जानने की शक्ति, अन्तर्धान हो जाने की शक्ति आदि । इन सबों का वर्णन विभूतिपाद में किया गया है । चतुर्थे 'जन्मौषधिमन्त्र तपः समाधिजाः सिद्धयः' ( पात यो० सू० ४। १ ) इत्यादिना सिद्धि पश्चकप्रपश्वनपुरस्सरं परमं प्रयोजनं कैवल्यम् । प्रधानादीनि पञ्चविंशतितत्त्वानि प्राचीनान्येव सम्मतानि । षड्वंशस्तु परमेश्वरः क्लेशकर्म विपाकाशयं रपरामृष्टः पुरुषः स्वेच्छया निर्माणकायमधिष्ठाय लौकिक वैदिक सम्प्रदायप्रवर्तकः संसाराङ्गारे तप्यमानानां प्राणभृतामनुग्राहकश्च । चतुर्थ पाद में - जन्म, औषधि, मन्त्र, तप और समाधि से उत्पन्न होनेवाली सिद्धियाँ हैं' ( यो० सू० ४।१ ) इत्यादि सूत्रों के द्वारा पाँच प्रकार की सिद्धियों का विस्तार करते हुए परम लक्ष्य कैवल्य का निर्देश पतञ्जलि ने किया 1 [ साधन के भेद से सिद्धियों के पाँच भेद किये गये हैं । जो सिद्धियां जन्म से ही प्राप्त रहती हैं उन्हें जन्मज कहते हैं, जैसे पक्षियोंके उड़ने की सिद्धि या देवताओं की सिद्धि । कुछ सिद्धियाँ औषधियों के सेवन से प्राप्त होती हैं, जैसे पारा आदि का सेवन करके शरीर में विलक्षण परिणाम उत्पन्न करना । मन्त्र से होनेवाली सिद्धियों में इष्टदेव की प्राप्ति प्रधान
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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