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________________ ५१२ सर्वदर्शनसंग्रहे(८. मीमांसकों की शंका का उत्तर-स्फोटसिद्धि) तदेतत्काशकुशावलम्बनकल्पम् । विकल्पानुपपत्तेः। किं वर्णमात्रं पदप्रत्ययावलम्बनं वर्णसमूहो वा ? नाद्यः। परस्परविलक्षणवर्णमालायामभिन्नं निमित्तं पुष्पेषु विना सूत्रं मालाप्रत्ययवदित्येकं पदमिति प्रतिपत्तेरनुपपत्तेः। नापि द्वितीयः। उच्चरितप्रध्वस्तानां वर्णानां समूहभादासम्भवात् । [ वैयाकरण लोग उत्तर देते हैं कि नदी में डूबते हुए व्यक्ति ] जैसे बहते हुए घासफूस का सहारा लेते हैं वैसे ही आपका यह तर्क है। इन दोनों की विकल्पों की असिद्धि हो जाती है। क्या अकेला वर्ण पद की प्रतीति कराता है या वर्णों का समह ? पहला विकल्प ठीक नहीं क्योंकि जैसे फलों में बिना सूत के माला की प्रतीति नहीं होती। उसी प्रकार एक दूसरे से विलक्षण ( Peculiar ) वर्णों की माला होने पर भी अनेक वर्षों में अनुस्यूत होनेवाले किसी एक अभिन्न निमित्त के बिना 'यह एक पद है' ऐसी प्रतीति नहीं हो सकती । दूसरा विकल्प भी ठीक नहीं है, क्योंकि उच्चारण किये जाने के बाद नष्ट हो जानेवाले वर्षों का समूह कभी हो ही नहीं सकता। तत्र हि समूहव्यपदेशो ये पदार्था एकस्मिन्प्रदेशे सहावस्थिततया बहवोऽनुभूयन्ते। यर्थकस्मिन्प्रदेशे सहावस्थितयानुभूयमानेषु धवखदिरपलाशादिषु समूहव्यपदेशो यथा वा गजनरतुरगादिषु। न च ते वर्णास्तथानुभूयन्ते । उत्पन्नप्रध्वस्तत्वात् । अभिव्यक्तिपक्षेपि क्रमेणवाभिव्यक्तिः । समूहासम्भवात् । __ हम ‘समूह' उसे ही कहते हैं जहाँ कुछ पदार्थ एक ही स्थान में साथ-साथ रहने के कारण अनेक सख्या में अनुभूत हों । जैसे एक ही स्थान में साथ-साथ रहने के कारण अनुभूत होनेवाले धव, खदिर (खैर), पलाश आदि वृक्षों में 'समूह' का प्रयोग होता है अथवा जैसे गज, मनुष्य और अश्व आदि [ जीवों के समूह का प्रयोग करते हैं। ] वर्णों का अनुभव तो उस रूप में होता नहीं । कारण यह है कि ये उत्पन्न होकर नष्ट हो जाते हैं [ अत: एक स्थान में साथ-साथ रहने का अवसर इन्हें कहाँ से मिलेगा कि वर्णों का समूह होगा ?] ___ यदि हमारे समान [ स्फोट की ] अभिव्यक्ति का पक्ष भी लिया जाय तो वहां भी अभिव्यक्ति [ एक ही साथ नहीं हो जातो ] क्रम से ही होती है। कारण यह है कि किसी भी दशा में क्षणिक वर्गों का समूह होना सम्भव नहीं है। ___ नापि वर्णेषु काल्पनिकः समूहः कल्पनीयः। परस्पराश्रयप्रसङ्गात् । एकार्थप्रत्यायकत्वसिद्धौ तदुपाधिना वर्णेषु पदत्वप्रतीतिस्तत्सिद्धावेकार्थप्रत्यायकत्वसिद्धिरिति । तस्माद्वर्णानां वाचकत्वासम्भवात्स्फोटोऽभ्युपगन्तव्यः।
SR No.091020
Book TitleSarva Darshan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmashankar Sharma
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year
Total Pages900
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size38 MB
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